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मंगवती सूत्र-श. १५ श्रमण एवं श्रमण भगवन्त का तप-तेज
आणंदा ! इओ एगं महं उवमियं णिसामेहि' । तएणं अहं गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते, तेणेव उवागच्छामि । तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी-एवं खलु आणंदा ! इओ चिराईयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया० एवं तं चेव सव्वं णिरवसेसं भाणियव्वं, जाव 'णियगणयरं साहिए'। तं गच्छ णं तुमं आणंदा ! धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स जाव परिकहे हि ।
भावार्थ-गोशालक की बात सुन कर आनन्द स्थविर भयभीत हुए । वे वहां से लौट कर त्वरित गति से शीघ्र ही कोष्ठक उद्यान में, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के समीप आये और तीन बार प्रदक्षिणा एवं वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार बोले-'हे भगवन् ! आज छठ-क्षमण के पारणे के लिए आपको आज्ञा लेकर श्रावस्ती नगरी में ऊँच, नीच और मध्यम कुलों में गोचरी के लिये जाते हुए जब मैं हालाहला कुम्भारिन की दूकान के अदूर सामन्त होकर जा रहा था, तब मंखलिपुत्र गोशालक ने मुझे देखा और मुझे बुला कर कहा-"हे आनन्द ! यहां आ और मेरे एक दृष्टान्त को सुन ।" तब मैं उसके पास गया । गोशालक ने मुझ से इस प्रकार कहा-“हे आनन्द ! आज से बहुत काल पहले कुछ वणिक इत्यादि पूर्ववत् यावत् नागदेव ने उसे अपने नगर में रख दिया। इसलिये हे आनन्द ! तू जा और अपने धर्माचार्य, धर्मोपदेशक को यावत् कह ।"
.. श्रमण एवं श्रमण भगवंत का तप-तेज
११ प्रश्न-तं पभू णं भंते ! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं
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