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भगवती सूत्र. १. १५ जालेल्या के प्रहार में गोचालय की रसा३
याए तेयलेस्साए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स सा उसिणा तेय. लेस्सा पडिहया । तएणं से वेसियायणे वालतवस्सी ममं सीयलियाए तेयलेस्साए तं उसिणं तेयलेस्म पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरंगस्स किंचि आवाहं वा वावाहं वा छविच्छेयं वा अकीरमाणं पासित्ता तं उसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरइ, तं उसिणं तेग्लेम्स पडिमाहरित्ता ममं एवं वयासी-'से गयमेयं भगवं' ! 'से गयमेयं भगवं' !।
काठन शब्दार्थ-पडिसाहरणट्टयाए-पीछे हटाने के लिए, सीयलियं तेयलेस्सं-शीतल जोलण्या, पडिहया-प्रतिहत (पीछी हटी हुई), गय मेयं-मैने जान लिया ।
भावार्थ-हे गौतम ! मैंने मंखलिपुत्र गोशालक के ऊपर अनुकम्पा करके वैश्यायन बाल-तपस्वी को तेजोलेश्या का प्रतिसंहरण करने के लिये, शीतल तेजोलेश्या बाहर निकाली। मेरी उस शीतल तेजोलेश्या से वैश्यायन बालतपस्वी की उष्ण-तेजोलेश्या का प्रतिघात हो गया। मेरी शीतल तेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ और गोशालक के शरीर को किञ्चित् भी पीड़ा अथवा अवयव का छेद नहीं हुआ जान कर, वैश्यायन बाल-तपस्वी ने अपनी उष्ण-तेजोलेश्या को पीछी खींच ली और मेरे प्रति इस प्रकार बोला"हे भगवन् ! मैंने जाना । हे भगवन् ! मैने जाना।"
तएणं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी-किं णं भंते ! एस जूयासेजायरए तुम्भे एवं वयासी-से गयमेयं भगवं ! से गयमेयं भगवं' ? तएणं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-'तुमं गं गोसाला ! वेसियायणं बालतवस्सि पाससि,
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