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भगवती सूत्र--श. १: इ. १ लरकावासों की संख्या विस्तारादि
२१३१.
उक्कोसेणं संखेजा णपुंसगवेयगा उववजंति, एवं कोहकसाई, जाव लोभकसाई; सोइंदियउवउत्ता ण उववजंति, एवं जाव फासिंदियोवउत्ता ण उववजंति, जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा णोइंदियोवउत्ता उववजंति, मणजोगी ण उक्वजति, एवं वइजोगी वि, जहण्णेणं एकको वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा कायजोगी उववति, एवं सागारोवउत्ता वि, एवं अणागारोवउत्ता वि ।
कठिन शब्दार्थ-कण्हपक्खिया-कृष्णपाक्षिक, सुक्कपक्खिया-शुक्लपाक्षिक । .
भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्येय विस्तृत नरकावासों में एक समय में कितने नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं ? २ कितने कापोत लेश्यावाले नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? ३ कितने कृष्ण-पाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं ? ४ कितने शुक्ल-पाक्षिक जीव उत्पन्न होते है ? ५ कितने संज्ञो जीव उत्पन्न होते हैं ? ६ कितने असंज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं ? ७ कितने भवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं ? ८ कितने अभवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं ? ९ कितने आभिनिबोधिकज्ञानी (मतिज्ञानी) जीव उत्पन्न होते हैं ? १० कितने श्रुतज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? ११ कितने अवधिज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? १२ कितने मतिअज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? १३ कितने श्रुतअज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? १४ कितने विभंगज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? १५ कितने चक्षुदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? १६ कितने अचक्षुदर्शनी उत्पन्न होते है ? १७ कितने अवधिदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? १८ कितने आहार-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? १९ कितने भय-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? २० कितने मैथुन-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? २१ कितने परिग्रह-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? २२ कितने
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