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________________ २२३८ भगवती सूत्र-श. १३ उः ६ भानेज का राज्याभिषेक कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ, कोथुवियपुरिसे सद्दावेत्ता एवं वयासी'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वीतीभयं णयरं सभितरवाहिरियं०' जाव पचप्पिणंति । तएणं से उदायणे राया दोच्चं पि कोडवियः पुरिसे सदावेइ, सदावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! केसिस्स कुमारस्स महत्थं ३ एवं रायाभिसेओ जहा सिवभहस्स कुमारस्स तहेव भाणियब्यो जाव 'परमाउं पालयाहि, इट्ठजणसंपरिवुडे सिंधूमोवीरपामोक्खाणं सोलसण्हं जणवयाणं वीतीभयपामो. क्खाणं तिण्णि तेसट्ठीणं णयरागरसयाणं महमेणपामोवखाणं दसण्हं राईणं अण्गेसिं च बहूणं राईसर० जाव कारेमाणे, पालेमाणे विहराहि' त्ति कटु जयजयसई पउंजंति । तएणं से केसी कुमारे राया जाए, महया० जाव-विहरइ । कठिन शब्दार्थ-मुच्छिए-मूच्छित (आसक्त), गिद्ध-गृद्ध, गढिए-ग्रथित (बद्ध) अज्झोववण्णे-तल्लीन होकर, अणादीयं-अनादि, अणवदग्गं-अनन्त, दीहमद्धं-लम्बे मार्गवाला, सेयं-श्रेयस्कर, भाइणेज्ज-भागिनेय (भानेज), णिसीयइ-वंठे, खिप्पामेव-शीघ्र ही। . भावार्थ-६-उदायन नरेश को इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ कि'अभीचि कुमार मेरा एक ही पुत्र है, वह मुझे अत्यन्त इष्ट एवं प्रिय है यावत् उसका नाम श्रवण भी दुर्लभ है, तो फिर उसके दर्शन दुर्लभ हों, इसमें तो कहना ही क्या ? यदि मैं अभीचि कुमार को राज्य में स्थापित करके श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास मुण्डित होकर यावत् प्रवज्या ग्रहण करलं, तो अभीचि कुमार, राज्य, राष्ट्र यावत् जनपद में और मनुष्य सम्बन्धी काम-भोगों में मूच्छित, गृद्ध, ग्रथित एवं तल्लीन होकर अनादि-अनन्त दीर्घ मार्ग वाले चार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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