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भगवती सूत्र-मः १६ उ. ६ उदायन नरेटा का संकल्प
दूसरे ग्राम जाते हुए यावत् विहार करते हुए यहां पधारें, यहां समोसरें और इस वीतिभय नगर के बाहर मृगवन नामक उद्यान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण कर, संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरें, तो मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार करूं यावत् पर्युपासना करूँ। उदायन राजा को उत्पन्न हुए इस प्रकार के संकल्प को जान कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी चम्पा नगरी के पूर्णभद्र उद्यान से निकले और अनुक्रम से विचरते हुए, ग्रामानुग्राम चलते हुए यावत् सिन्धुसौवीर देश में वीतिभय नगर के मृगवन उद्यान में पधारे यावत् विचरते है । वोतिभय नगर में शृंगाटकादि मार्गों में यावत् परिषद पर्युपासना करती है । श्रमण भगवान महावीर स्वामी के आगमन की बात सुन कर उदायन राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ और अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर कहा-हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र वीतिभय नगर को भीतर और बाहर से स्वच्छ करवाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्रानुसार वर्णन करना चाहिये, यावत् उदायन राजा भगवान् की पर्युपासना करता है और प्रभावती प्रमुख रानियाँ भी पर्युपासना करती हैं। भगवान् ने धर्म-कथा कही। श्रमण भगवान महावीर स्वामी से धर्मोपदेश सुनकर और हृदय में अवधारण कर उदायन नरेश हर्षित और सन्तुष्ट हुए। वे खड़े हुए और श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार प्रदक्षिणा की, यावत् नमस्कार करके इस प्रकार बोले--"हे भगवन् ! जैसा आपने कहा, वह वैसा ही है, यथार्थ है, तथ्य है, यावत् जिस प्रकार आप कहते हैं, उसी प्रकार है । हे देवानुप्रिय ! मैं चाहता हूँ कि अभीचिकुमार का राज्याभिषेक करके देवानुप्रिय के पास मुण्डित होकर यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करूं।" भगवान ने कहा--" हे देवानुप्रिय ! जैसा सुख हो वैसा करो। धर्मकार्य में विलम्ब मत करो।" श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के वचन सुन कर उदायन राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। राजा ने भगवान् को वन्दना-नमस्कार किया और अभिषेक योग्य पट्टहस्ती पर सवार होकर वीतिभय नगर की ओर जाने लगा।
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