SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रा १३६६ मान्तर-निरन्तर उपपात व्यवन आवामे '? उत्तर - गोयमा ! से जहाणामए इहं मणुरसलोगंसि उबगारिय लेणा वा उज्जाणियलेणाइ वा णिजाणियलेणाइ वा धारिवारिय लेणाड़ वा, तत्थ णं बहवें मणुस्सा य मणुस्सीओ य आसयंति, संयंति - जहा रायम्पसेणइज्जे जाव - कल्लाणफलवित्तिविसेसं पचणुभवमाणा विहरंति, अण्णत्थ पुण बसहिं उवेंति, एवामेव गोयमा ! मरस असुरिंदर असुरकुमाररण्णो चमरचंचे आवामे केवलं किड्डा-रड़पत्तियं, अण्णत्थ पुण वसहि उवेंति से तेणट्टेणं जावआवासे | 'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति जाव- विहरइ । तर णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ रायगिहाओ णयराओ गुणसिलाओ जाव - विहरs | २२२९ कठिन शब्दार्थ-उबगारियलेणाइ - औपकारिकगृह ( भवनों के नीचे का चबूतरा ) उज्जानियलेणाइ - लोगों के उपकार के लिये बगीचों में बनाये हुए घर अथवा नगर के पास धर्माला आदि, णिज्जाणियलेणाइ- नगर से बाहर निकलने पर आराम के लिये बनाये हुए घर, धारिवारियणाइ - ( पाठ भेद-वारिधारियलेणाइ) जिनमें पानी के फव्वारे छूट रहे हों, ऐसे बगीचे आदि में बनाये हुए घर । भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमारों के इन्द्र और असुरकुमारों के राजा चमर का 'चमरचंचा' नामक आवास कहाँ कहा गया है ? Jain Education International २ उत्तर - हे गौतम! इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में तिर्च्छा असंख्य द्वीप समुद्रों को उल्लंघन करने के बाद ( अरुणवर द्वीप की बाह्य वेदिका के अन्त से अरुणवर समुद्र में बयालीस हजार योजन जाने के बाद चमरेन्द्र का तिच्छिक कूट नाम का उपपात पर्वत आता है। उससे दक्षिण दिशा में छह For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy