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शतक १३ उद्देशक ५
नैरयिकों का आहार
१ प्रश्न-णेरइया णं भंते ! किं सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, मीसाहारा ?
१ उत्तर-गोयमा ! णो सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, णो मीसा. हारा । एवं असुरकुमारा, पढमो गैरइय उद्देसओ गिरवसेसो भाणियव्वो।
® सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति के
॥ तेरसमसए पंचमो उद्देसो समत्तो । कठिन शब्दार्थ-निरवसेसो--निरवशेष (कुछ भी नहीं छोड़ कर सम्पूर्ण)।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक सचित्ताहारी हैं, अचित्ताहारी हैं या मिश्राहारी हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! वे न तो सचित्ताहारी हैं और न मिश्राहारी हैं, वे अचित्ताहारी हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों के लिये भी कहना चाहिये । यहाँ प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें आहार पद का प्रथम नैरयिक उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिये।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
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॥ तेरहवें शतक का पांचवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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