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________________ १६४६ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं। इस क्रम से जिस प्रकार पांच नरयिक जीवों के त्रिक-संयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार छह नैरयिक जीवों के भी त्रिक-संयोगी भंग कहना चाहिये, परन्तु यहां एक का संचार अधिक करना चाहिये । शेष सभी पूर्ववत् कहना चाहिये। (इस प्रकार ये ३५० भंग होते हैं।) _ (पंच संयोगी १०५ भंग)-जिस प्रकार पांच नरयिकों के भंग कहे गये, उसी प्रकार छह नरयिकों के चतुःसंयोगी और पंच-संयोगी भंग जान लेने चाहिये, परन्तु इनमें एक नैरयिक का संचार अधिक करना चाहिये । यावत् अन्तिम भंग इस प्रकार है-दो वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में होता है। ___ अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए जाव एगे तमाए होज्जा; अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे धूमप्पभाए एगे अहे. सतमाए होजा; अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे पंकप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा; अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होजा; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे पंकप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होजा; अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होजा; अहवा एगे सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए, जाव एगे अहेसत्तमाए होजा। (छह संयोगी सात भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक तमःप्रभा में होता है । (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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