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भगवती सूत्र-ग. १ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक
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है। (शर्कराप्रभा के संयोग वाले दस भंग होते हैं । (१) अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है । (२) अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । (३) अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । (४) अथवा एक वालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । (इस प्रकार वालुकाप्रभा के संयोग वाले चार भंग होते है।) (१) अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अध:सप्तन पृथ्वी में होता है । (इस प्रकार यह एक भंग होता है । ये २०-१०४-१-ये चतुःसंयोगी ३५ भंग होते हैं। सब मिलकर चार नरयिक आश्रयी असंयोगी ७, द्विक संयोगी ६३, त्रिक संयोगी १०५ और चतुःसंयोगी ३५, ये सब २१० भंग होते हैं।)
विवेचन-चार नैरयिक जीवों के १-३, २-२, ३-१, इस प्रकार एक विकल्प के द्विक संयोगी तीन भंग होते हैं। उनमें से रत्नप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों का संयोग करने से १-३ के छह भंग होते हैं । इसी प्रकार २-२ के छह भंग और ३-१ के छह भंग होते हैं । इस प्रकार ये अठारह भंग होते हैं । शर्कराप्रभा के साथ उसी प्रकार तीन विकल्प के ५-५-५ ये पन्द्रह भंग होते हैं । इस प्रकार वालुकाप्रभा के साथ ४-४-४-ये बारह भंग होते हैं। इसी प्रकार पकप्रभा के साथ ३-३-३-ये नौ, धूमप्रभा के साथ २-२-२-ये छह, और तमःप्रभा के साथ १-१-१-ये तीन भंग होते हैं । सभी मिलकर विकसंयोगी त्रेसठ भंग होते हैं। उनमें से रत्नप्रभा के अठारह भंग ऊपर मूल अनुवाद में बतला दिये गये है। इसी प्रकार शर्कराप्रभा के साथ आगे की पवियों का योग करने से १-३ के पांच भंग होते हैं। यथा-एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा आदि में होते हैं। इसी तरह २-२ के भी पांच भंग होते हैं । यथा-दो शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा आदि में होते हैं। इसी प्रकार ३-१ के भी पांच भंग होते हैं । यथा-तीन गर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा आदि में होता है। इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ पन्द्रह भंग होते हैं। वालुकाप्रभा के साथ आगे को पृथ्वियों का संयोग करने से चार विकल्प होते हैं । उनको पूर्वोक्त तीन भंगों से गुणा करने पर बारह भंग होते हैं । इसी प्रकार पंकप्रभा के साथ आगे की पृथ्वियों का योग
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