________________
१५८८
भगवती सूत्र-ग. ९ उ. ३ ? अमोन्ना केवली
यवं, णवरं ओहिणाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे भाणियव्वे । एवं केवलं मणपजवणाणं उप्पाडेजा, णवरं मणपज्जवणाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे भाणियव्वे ।
___ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली आदि के पास से सुने बिना ही कोई जीव शुद्ध भुतज्ञान उत्पन्न करता है ?
८ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार आभिनिबोधिक ज्ञान का कथन किया गया, उसी प्रकार शुद्ध श्रुतज्ञान, शुद्ध अवधिज्ञान और शुद्ध मनःपर्ययज्ञान के विषय में भी कहना चाहिये, परन्तु श्रुतज्ञान में श्रुत-ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम, अवधिज्ञान में अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम और मनःपर्यय ज्ञान में मनःपर्ययज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम कहना चाहिये।
९ प्रश्न-असोचा णं भंते ! केवलिस्म वा जाव तप्पविखय. उवासियाए वा केवलणाणं उप्पाडेज्जा ?
९ उत्तर-एवं चेव, णवरं केवलणाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए भाणियब्वे, सेसं तं चेव; से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचइजाव केवलणाणं णो उप्पाडेज्जा ।
कठिन शब्दार्थ-खए-क्षय से ।
भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली आदि के पास सुने बिना ही कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न करता है ?
९ उत्तर-हे. गौतम ! कोई करता है और कोई नहीं करता। प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? उत्तर-हे गौतम ! जिस जीव ने केवल ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय किया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org