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भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३१ असोच्चा केवली
संवरेणं संवरेज्जा; जस्स णं अज्झवसाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे णो कडे भवइ से णं असोचा केवलिस्स वा जाव णो संवरेज्जा, से तेणद्वेणं जाव णो संवरेज्जा ।
कठिन शब्दार्थ - अज्झवसाणावरणिज्जाणं-अध्यवसानावरणीय ( भाव चारित्र के आवरक) ।
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भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! केवली आदि के पास से धर्म श्रवण किये बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध संवर द्वारा संवृत्त होता है (आश्रव निरोध करता है) ?. ६ उत्तर - हे गौतम ! कोई करता है और कोई नहीं भी करता । प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
उत्तर - हे गौतम! जिस जीव ने अध्यवसानावरणीय ( भाव चारित्रावरणीय) कर्म का क्षयोपशम किया है, वह यावत् सुने बिना भी शुद्ध संवर द्वारा आश्रव का निरोध करता है और जिस ने अध्यवसानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, वह शुद्ध संवर द्वारा आश्रव का निरोध नहीं करता । इसलिये हे गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से कहा है ।
७ प्रश्न - असोचा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव केवलं आभिणिवोहियणाणं उप्पाडेजा ?
७ उत्तर - गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेiइए केवलं आभिणिवोहियणाणं उप्पाडेजा, अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियणाणं णो उप्पाडेजा । प्रश्न-से केणट्टेणं जाव णो उप्पाडेजा ?
उत्तर - गोयमा ! जस्स णं आभिणिबोहियणाणावरणिजाणं
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