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________________ १५७८ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३ से ३० अन्तर्दीपक मनुष्य आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य) में लवण समुद्र में प्रत्येक विदिशा में तीन तीन सौ योजन जाने पर प्रत्येक दिशा में एकोरुक आदि एक एक द्वीप आता है। वे द्वीप गोल हैं । उनकी लम्बाई चौड़ाई तीन तीन सौ योजन की है। परिधि प्रत्येक की ९४९ योजन से कुछ कम है । इन द्वीपों से चार चार सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर क्रमशः पाँचवाँ, छठा, सातवां आठवां, द्वीप आते हैं । इनकी लम्बाई चौड़ाई चार चार सौ योजन की है। ये भी गोल हैं। इनकी प्रत्येक की परिधि १२६५ योजन से कुछ कम है । इसी प्रकार इनसे आगे क्रमशः पांच सौ, छह सौ, सात सो, आठ सौ, नवसौ, योजन जाने पर क्रमशः चार चार द्वीप आते जाते हैं। उनकी लम्बाई चौड़ाई पांचसौ से लेकर नवसौ योजन तक क्रमशः जाननी चाहिये। सभी गोल हैं। तिगुनी से कुछ अधिक परिधि है। इसी प्रकार चल्लहिमवान् पर्वत की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। जिस प्रकार चुल्लहिमवान् पर्वत के चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तरद्वीप कहे गये हैं । उसी प्रकार शिखरी पर्वत की चारों विदिशाओं में भी अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं । जिनका वर्णन दसवें शतक के ७ वें उद्देशक से लेकर ३४ वें उद्देशक तक २८ उद्देशकों में किया गया है। उनके नाम आदि सभी समान हैं। जीवाभिगम और प्रज्ञापना आदि सूत्रों की टीका में चुल्लहिमवान् और शिखरी पर्वत की चारों विदिशाओं में चार चार दाढ़ाएं वतलाई गई हैं और उन दाढ़ाओं पर अन्तरद्वीपों का होना बतलाया गया है। किंतु यह बात सूत्र के मूलपाठ से मिलती नहीं है, क्योंकि , इन दोनों पर्वतों की लम्बाई आदि जो बतलाई गई है, वह पर्वत की सीमा तक ही आई है . उसमें दाढ़ाओं की लम्बाई आदि नहीं वतलाई गई । यदि इन पर्वतों की दाढ़ाएँ होती, तो उन पर्वतों की हद लवण समुद्र में भी बतलाई जाती। लवण समुद्र में भी दाढ़ाओं का वर्णन नहीं है । इसी प्रकार यहाँ भगवती सूत्र के मूलपाठ में तथा टीका में भी दाढ़ाओं का वर्णन नहीं है । ये द्वीप विदिशाओं में टेढ़े टेढ़े आये हुए हैं, इसलिये दाढ़ाओं की कल्पना करली गई मालूम होती है । सूत्र का वर्णन देखने से दाढ़ाएँ किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होती। ॥ इति नौवें शतक के तीन से तीस तक के उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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