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भगवती मूत्र-श. ५ उ. १४ एकेंद्रिय जीव और श्वासोच्छ्वास
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१४ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पाँच क्रिमा वाले होते हैं। इसी प्रकार यावत् कन्द तक जानना चाहिये । इसी प्रकार यावत् (प्रश्न) पीज को कम्पाने आदि के सम्बन्ध में प्रश्न ! (उत्तर) हे गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
दिवेचन-पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवो को श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं । इसी प्रकार अप्कायिक आदि चारों स्थावर जीव भी पृथ्वीकायिक आदि पांचों स्थावर जीवों को श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। इन पाँचों के ये पच्चीस सूत्र होते हैं और इनके क्रिया सम्बन्धी भी पच्चीस सूत्र होते हैं।
पृथ्वीकायिकादि जीव, पृथ्वीकायिकादि जीवों को श्वासोच्छ्वास रूप से ग्रहण करते हुए और छोड़ते हुए जब तक उनको पीड़ा उत्पन्न नहीं करते, तब तक कायिकादि तीन क्रियाएँ लगती है । जब पीड़ा उत्पन्न करते हैं तब पारितापनिकी सहित चार क्रियाएँ लगती हैं और जब उन जीवों की घात करते हैं, तब प्राणातिपातिकी सहित पाँच क्रियाएं लगती हैं।
वायुकायिक जीव, वृक्ष के मूल को तब कम्पित और पतन कर सकते हैं जब कि वृक्ष नदी के किनारे पर हो और उसका मूल पृथ्वी से ढका हुआ न हो।
।। नौवें शतक का चौतीसवाँ उद्देशक समाप्त ।
॥ नौवां शतक सम्पूर्ण ॥
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