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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३३ जमाली चरित्र
जमालिस्स खत्तियकुमारस्म उत्तरपुरस्थिमेणं एगा वरतरुणी सिंगारागार जाव कलिया सेयं श्ययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकिइसमाणं भिंगारं गहाय चिट्ठइ । तएणं तरस जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणपुरस्थिमेणं एगा वरतरुणी सिंगारागार जाव कलिया चित्तकणगदंडं तालवेट गहाय चिट्ठइ । .
कठिन शब्दार्थ-महासणवरंसि-उत्तम भद्रासन पर, अम्मधाई-धायमाता, पिट्टओपीछे की ओर, वरतरुणी-श्रेष्ठ युवती, सिंगारागारचारवेसा-मनोहर आकृति और सुन्दर वेश वाली, संगयगय-संगत गतिवाली, धवलं आयवत्तं-श्वेत छत्र, महरिहतवणिज्जज्जलविचित्तवंडाओचिल्लियाओ-महामूल्यवान तपनीय (रक्त स्वर्ण) से बने हुए उज्ज्वल विचित्र दंडवाले, संखंककुंदेंदुरगरय-अमयमहिय-फेणपुंजसणिकासाओ- शंख, अंक, चन्द्र, मोगरे के . फूल, जल-बिन्दु और मथे हुए अमृत फेन के समान, विमलसलिलपुण्णं-स्वच्छ जल से परिपूर्ण, मत्तगयमहामहाकिइसमाणे-उन्मत्त हाथी के फैले हुए मुंह के आकार वाले, भिगारंकलश को, तालवेंट-पंखा । .
भावार्थ-इसके बाद जमालीकुमार की माता, स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत करके, हंस के चिन्ह वाला पटशाटक लेकर दक्षिण की ओर से शिविका पर चढ़ी और जमालीकुमार के दाहिनी ओर उत्तम भद्रासन पर बैठी। इसके बाद जमालीकुमार की धायमाता स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत करके रजोहरण और पात्र लेकर दाहिनी ओर से शिविका पर चढ़ी और जमालीकुमार के बाई ओर उत्तम भद्रासन पर बैठी । इसके बाद जमालीकुमार के पीछे मनोहर आकार और सुन्दर वेष वाली, सुन्दर गतिवाली, सुन्दर शरीरवाली यावत् रूप और यौवन के विलास युक्त, एक युवती हिम, रजत, कुमुद, मोगरे के फूल और चन्द्रमा के समान कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त श्वेत छत्र हाथ में लेकर, लीलापूर्वक धारण करती हुई खड़ी रही। फिर जमालीकुमार के दाहिनी तथा बांयी ओर, श्रृंगार के घर के समान मनोहर आकारवाली और सुन्दर वेषवाली
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