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भगवती सूत्र-ग. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
हिति-पहिनाया, पिणद्धेति-धारण कराया, रयणसंकडुक्कडं-रत्नों से जड़े हुए, मउडंमुकुट, किं बहुणा-अधिक क्या कहें, गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमेणं-गुंथे हुए लपेटे, पिरोये और परस्पर जोड़े हुए, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ–अनेक सैकड़ों स्तंभों से युक्त, लीलट्टियतालभंजियागं-लीला पूर्वक सालभंजिका (पुतली) वाली, सीयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे-शिविका गो प्रदक्षिणा करते हैं, पुरत्थाभिमुहे - पूर्व की ओर मुंह करके, सण्णिसण्णे--बैठा।
भावार्थ-२४-इसके बाद जमालीकुमार के माता-पिता ने उत्तर दिशा की ओर दूसरा सिंहासन रखवाया और जमालीकुमार को सोने और चांदी के कलशों से स्नान कराया, फिर सुगन्धित गन्धकालायित (गन्ध प्रधान लाल) वस्त्र से उसके अंग पोंछे । उसके बाद सरस गोशीर्ष चन्दन से गात्रों का विलेपन किया। तत्पश्चात् ऐसा पटशाटक (रेशमी वस्त्र) पहिनाया जो नासिका के निश्वास की वायु से उड़ जाय, ऐसा हलका, नेत्रों को अच्छा लगे वैसा सुंदर,सुंदर वर्ण और कोमल स्पर्श से युक्त था । वह वस्त्र घोड़े के मुख को लार से भी अधिक मुलायम, श्वेत सोने के तार से जड़ा हुआ महामूल्यवान् और हंस के चिन्ह से युक्त था। फिर हार ( अठारह लड़ीवाला हार), अर्द्ध हार (नवसर हार ) पहनाया। जिस प्रकार राजप्रश्नीय सूत्र में सूर्याभ देव के अलंकारों का वर्णन है, उसी प्रकार यहां भी समझना चाहिए । यावत् विचित्र रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट पहिनाया। अधिक क्या कहा जाय, ग्रंथिम (गूंथी हुई), वेष्टिम (वींटी हुई), पूरिम । पूरी की हुई) और संघातिम (परस्पर संघात की हुई) से तैयार की हुई चारों प्रकार की मालाओं से कल्प वृक्ष के समान उस जमालीकुमार को अलंकृत एवं विभूषित किया गया। इसके बाद उसके पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया
और इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रियों ! सैकड़ों स्तम्भों से युक्त लीलापूर्वक पुत. लियों से युक्त इत्यादि राजप्रश्नीय सूत्र में वणित विमान के समान यावत् मणिरत्नों की घण्टिकाओं के समूहों से युक्त, हजार पुरुषों द्वारा उठाने योग्य शिविका (पालकी) तैयार करके मझे निवेदन करो।" इसके बाद उन सेवक पुरुषों ने उसी प्रकार की शिविका तैयार कर निवेदन किया। इसके बाद जमाली कुमार केशालङ्कार, वस्त्रालङ्कार, मालालङ्कार और आभरणालङ्कार, इन चार
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