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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ नैरयिक प्रवेशनक का अल्प बहुत्व
विवेचन--संख्यात प्रवेशनक के समान असंख्यात प्रवेशनक का भी कथन करना चाहिये । किन्तु यहाँ 'असंख्यात' का पद अधिक कहना चाहिये । असंख्यात नैरयिक जीवों सम्बन्धी एक संयोगादि भंग क्रमशः इस प्रकार होते है-७+२५२+८०५+११९०+९४५+ ३९२+६७-ये सभी मिलकर ३६५८ भंग होते हैं।
उत्कृष्ट प्रवेशनक के भंग ऊपर बतला दिये गये हैं।
नैरयिक प्रवेशनक का अल्प बहुत्व
२४ प्रश्न-एयस्स णं भंते ! रयणप्पभापुढविणेरइयप्पवेसणगस्स सक्करप्पभापुढवि-जाव अहे सत्तमापुटविणेरइयप्पवेसणगस्स कयरेकयरे जाव विसेसाहिया वा ? ___ २४ उत्तर-गंगेया ! सव्वत्थोवे अहेसत्तमापुढविणेरइयपवेसणए, तमापुढविणेरइयपवेसणए असंखेजगुणे; एवं पडिलोमगं जाव रयणप्पभापुढविणेरड्यपवेसणए असंखेजगुणे ।
कठिन शब्दार्थ--एयस्सणं--इनमें से, पडिलोमगं-प्रतिलोम (विपरीतक्रम) । - भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी नरयिक प्रवेशनक, शकंराप्रभा पृथ्वी नरयिक प्रवेशनक, यावत् अधःसप्तम पृथ्वी नरयिक प्रवेशनक, इनमें कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनक से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ?
२४ उत्तर-हे गांगेय ! सब से अल्प अधःसप्तम पृथ्वी नरयिक प्रवेशनक है, उससे तमःप्रभा पृथ्वी नरयिक प्रवेशनक असंख्यात गण है, इस प्रकार उलटे क्रम से यावत् रत्नप्रभा पृथ्वी नरयिक प्रवेशनक असंख्यात गुण है।
विवेचन-अधःसप्तम पृथ्वी में जाने वाले जीव सब से थोड़े हैं। उसकी अपेक्षा तमःप्रभा में जाने वाले असंख्यात गुण हैं । इस प्रकार उलटे क्रम से एक-एक से आगे असंख्यात गुण हैं।
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