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________________ १६६४. भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ उत्कृष्ट नरयिक प्रवेशनक अहवा रयणप्पभाए । सक्करप्पभाए जाव धूमप्पभाए तमाए य होज्जा १; अहवा रयणप्पभाए जाव धूमप्पभाए अहेसत्तमाए य होज्जा २; अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए जाव पंकप्पभाए तमाए य अहेसत्तमाए य होज्जा ३; अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए धूमप्पभाए तमाए अहेसत्तमाए य होजा ४; अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए पंकप्पभाए जाव अहेसत्तमाएं य होजा ५; अहवा रयणप्पभाए वालुयप्पभाए जाव अहेसत्तमाए होजा ६; अहवा रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य जाव अहेसत्तमाए य होजा ७। ...कठिन शब्दार्थ--उक्कोसेणं--उत्कृष्टता से, अमुयंतेसु--न छोड़ते हुए । भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हए नरयिक उत्कृष्ट पद में क्या रत्नप्रभा में होते हैं, इत्यादि प्रश्न ? २३ उत्तर-हे गांगेय ! उत्कृष्ट पद में सभी नैरयिक रत्नप्रभा में होते है। १ अथवा रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा में होते हैं । २ अथवा रत्नप्रभा और वालुकाप्रभा में होते है । इस प्रकार यावत् रत्नप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं। (त्रिकसंयोगी पन्द्रह विकल्प) (१) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और वालुकाप्रभा में होते हैं । इस प्रकार यावत् (५) रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं । (६) अथवा रत्नप्रमा, वालुकाप्रभा और पंकप्रभा में होते हैं। (७-९) अथवा यावत् रत्नप्रभा, वालुकाप्रमा और अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं । (१०) अथवा रस्नप्रमा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन नरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहां पर भी कहना चाहिये । यावत् (१५) अथवा रत्नप्रमा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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