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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ उत्कृष्ट नैरयिक प्रवेशनक
गस्स पच्छिमो आलावगो-अहवा असंखेजा रयणप्पभाए असंखेज्जा सक्करप्पभाए जाव असंखेजा अहेसत्तमाए होजा।
भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! असंख्यात नैरयिक, नरयित प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं, इत्यादि प्रश्न ?
__२२ उत्तर-हे गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं, अथवा एक रत्नप्रमा में और असंख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार संख्यात नैरयिकों के द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी भंग कहे, उसी प्रकार असंख्यात के भी कहना चाहिये, परन्तु इतनी विशेषता है कि यहां 'असंख्यात' का पद अधिक कहना चाहिये अर्थात् बारहवां 'असंख्यात पद' कहना चाहिये। शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिये, यावत् अन्तिम आलापक यह है-अथवा असंख्यात रत्नप्रभा में, असंख्यात शर्कराप्रभा में यावत् असंख्यात अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं ।
उत्कृष्ट नैरयिक प्रवेशनक २३ प्रश्न-उक्कोसेणं भंते ! णेरइया णेरइयप्पवेसणएणं० पुच्छा ।
२३ उत्तर-गंगेया ! सव्वे वि ताव रयणप्पभाए होज्जा; अहवा रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य होज्जा; अहवा रयणप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा; जाव अहवा रयणप्पभाए य अहेसत्तमाए य होजा; अहवा रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा; एवं जाव अहवा रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य
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