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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ संख्यात नैरयिक प्रवेशनक
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हैं। अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात वालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं, अथवा तीन रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात वालुकाप्रभा में होते हैं । इस क्रम से रत्नप्रभा में एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिये, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात वालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं । यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में और संख्यात अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, दो वालुकाप्रभा में और सख्यात पंकप्रभा में होते है। इस क्रम से त्रिक-संयोगी, चतुःसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी भंगों का कथन, दस नेरयिक सम्बन्धी भंगों के समान कहना चाहिये । अन्तिम भंग यह है-अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और यावत् संख्यात अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं। ... विवेचन-यहां ग्यारह से लेकर शीर्ष-प्रहेलिका तक की संख्या को-'संख्यात' कहा गया है। उसमें असंयोगी सात भंग होने हैं। द्विक-संयोगी में संख्याता के दो विभाग करने पर-एक और संख्यात, दो और संख्यात यावत् दस और संख्यात तथा 'संख्यात और संख्यात' इस एक विकल्प के ग्यारह भंग होते हैं । ये विकल्प रत्नप्रभादि पृथ्वियों के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने पर एक से लेकर संख्यात तक ग्यारह पदों का संयोग करने से और शर्कराप्रभादि पृथ्वियों के साथ केवल संख्यात पद का संयोग करने से बनते हैं। इनसे विपरीत रत्नप्रभादि पूर्व पूर्व की पृथ्वियों के साथ 'संख्यात' पद का संयोग और आगे आगे की पृथ्वियों के साथ एकादि पदों का संयोग करने से जो भंग होते हैं, उनकी विवक्षा यहां नहीं की गई है अर्थात् एक रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं, एक रत्नप्रभा में और संख्यात वालुकाप्रभा में होते हैं, इत्यादि भंग करने चाहिये । परन्तु 'संख्यात रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में, संख्यात रत्नप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है,'-इत्यादि भंग नहीं करने चाहिये । क्योंकि इससे पूर्व सूत्रों में ये ही क्रम विवक्षित है । पूर्व सूत्रों में दस आदि संख्याओं के दो भाग करके एकादि लघु संख्याओं को पहले दिया है और नौ आदि बड़ो
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