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भगवती सूत्र-श. ८ उ. . कार्मण शरीर प्रयोग बंध
वरणिजकम्मासरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं जाव पओगवंधे ।
कठिन शब्दार्थ-घेतट्वं - ग्रहण करना चाहिये ।
भावार्थ-७६ प्रश्न-हे भगवन् ! दर्शनावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है ?
७६ उत्तर-हे गौतम ! दर्शन को प्रत्यनीकता से, इत्यादि जिस प्रकार ज्ञानाबरणीय के कारण कहे हैं, उसी प्रकार दर्शनावरणीय के भी जानना चाहिये, किन्तु 'ज्ञानावरणीय' के स्थान में-'दर्शनावरणीय' कहना चाहिये यावत् दर्शनविसंवादन योग और दर्शनावरणीय कार्मण शरीर-प्रयोग नामकर्म, के उदय से दर्शनावरणीय कामण शरीर प्रयोग-बंध होता है।
७७ प्रश्न-सायावेयणिज्ज कम्मासरीरप्पओगवंधे गं भंते ! करम कम्मस्स उदएणं ?
७७ उत्तर-गोयमा ! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयांए, एवं जहा सत्तमसए दुस्समाउद्देसए जाव अपरियावणयाए सायावेयणिज कम्मासरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं सायावेयणिजकम्मा० जाव बंधे ।
७८ प्रश्न-असायावेयणिज-पुच्छा।
७८ उत्तर-गोयमा ! परदुक्खणयाए, परमोयणयाए, जहा सत्तमसए दुस्समाउद्देसए, जाव परियावणयाए असायावेयणिजकम्मा० जाव पओगवंधे। ..... कठिन शब्दार्थ-पाणाणुकंपयाए-प्राणियों पर अनुकंपा करने से, भपरियावणयाएपरिताप नहीं. उत्पन्न करने से, परसोयणयाए-दूसरे को शोक कराने से।
भावार्थ-७७ प्रश्न-हे भगवन् ! साता-वेदनीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध
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