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________________ ...१५२०... भगवती सूत्र-श. ८ उ. . कार्मण शरीर प्रयोग बंध वरणिजकम्मासरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं जाव पओगवंधे । कठिन शब्दार्थ-घेतट्वं - ग्रहण करना चाहिये । भावार्थ-७६ प्रश्न-हे भगवन् ! दर्शनावरणीय कार्मण शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है ? ७६ उत्तर-हे गौतम ! दर्शन को प्रत्यनीकता से, इत्यादि जिस प्रकार ज्ञानाबरणीय के कारण कहे हैं, उसी प्रकार दर्शनावरणीय के भी जानना चाहिये, किन्तु 'ज्ञानावरणीय' के स्थान में-'दर्शनावरणीय' कहना चाहिये यावत् दर्शनविसंवादन योग और दर्शनावरणीय कार्मण शरीर-प्रयोग नामकर्म, के उदय से दर्शनावरणीय कामण शरीर प्रयोग-बंध होता है। ७७ प्रश्न-सायावेयणिज्ज कम्मासरीरप्पओगवंधे गं भंते ! करम कम्मस्स उदएणं ? ७७ उत्तर-गोयमा ! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयांए, एवं जहा सत्तमसए दुस्समाउद्देसए जाव अपरियावणयाए सायावेयणिज कम्मासरीरप्पओगणामाए कम्मस्स उदएणं सायावेयणिजकम्मा० जाव बंधे । ७८ प्रश्न-असायावेयणिज-पुच्छा। ७८ उत्तर-गोयमा ! परदुक्खणयाए, परमोयणयाए, जहा सत्तमसए दुस्समाउद्देसए, जाव परियावणयाए असायावेयणिजकम्मा० जाव पओगवंधे। ..... कठिन शब्दार्थ-पाणाणुकंपयाए-प्राणियों पर अनुकंपा करने से, भपरियावणयाएपरिताप नहीं. उत्पन्न करने से, परसोयणयाए-दूसरे को शोक कराने से। भावार्थ-७७ प्रश्न-हे भगवन् ! साता-वेदनीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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