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भगवती सूत्र-श. ७ उ. १० कालोदायी की तत्त्वचर्चा और प्रव्रज्या
. प्रश्न-'हे गौतम ! तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण-ज्ञातपुत्र पांच अस्तिकाय को प्ररूपणा करते हैं, यथा-धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय यावत् उन्होंने अपनी सारी चर्चा गौतम से कही। फिर पूछा हे गौतम ! यह किस प्रकार है ? .
उत्तर--तब भगवान् गौतम ने अन्यतीथिकों से इस प्रकार कहा-"हे देवानुप्रियों ! हम अस्तिभाव (विद्यमान)को नास्तिभाव (अविद्यमान) नहीं कहते, इसी प्रकार नास्तिभाव को अस्तिभाव नहीं कहते । हे देवानप्रियों ! हम सभी अस्तिभावों को अस्तिभाव कहते हैं और नास्तिभावों को नास्तिमाव कहते हैं, इसलिये हे देवानुप्रियों ! आप स्वयं ज्ञान द्वारा इस बात का विचार करो," इस प्रकार कहकर गौतम स्वामी ने उन अन्यतीथिकों से कहा कि जैसा भगवान ने कहा है वैसा ही है । गौतमस्वामी गुणशीलक चंत्य में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आये और दूसरे शतक के पांचवें निग्रंन्योद्देशक में कहे अनुसार यावत् भगवान् को भक्तपान दिखलाया। भक्तपान. दिखलाकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार किया। वन्दन नमस्कार करके न बहुत दूर न बहुत निकट रह कर यावत् उपासना करने लगे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे महाकहापडिवण्णे या वि होत्था, कालोदाई य तं देसं हवं आगए । 'कालोदाइ' त्ति समणे भगवं महावीरे कालोदाई एवं वयासी-“से गृणं ते कालोदाई ! अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं, समुवागयाणं, मंणिवि. ट्ठाणं तहेव जाव से कहमेयं मण्णे एवं ? से णूणं कालोदाई ! अट्टे सम? ?” "हंता अत्थि।” "तं सच्चे णं एसमढे कालोदाई ! अहं पंच
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