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भगवती सूत्र-श. ७ उ. ७ छद्मस्थ और केवली
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अरूपी नहीं । ममनस्क (संजी) प्राणी के रूप की अपेक्षा काम सचित्त भी हैं और शब्द द्रव्य की अपेक्षा से तथा असंनी जीव के गरीर के रूप की अपेक्षा अचित्त भी हैं । यहाँ सचित्त शब्द से विशिष्ट चेतना अथवा संज्ञीपन ग्रहण किया गया है और अचित्त शब्द से विशिष्ट चेतना शून्य अर्थात् असंजीपन ग्रहण किया गया है। जीवों के शरीर के रूपों की अपेक्षा काम जीव भी हैं और शब्दों की अपेक्षा चित्रित पुतली आदि के रूपों की अपेक्षा अजीव भी हैं । काम सेवन के कारण भूत होने से जीवों के ही होते हैं, अजीवों के नहीं होते । क्योंकि उनमें काम का अभाव है। ......
जो शरीर से भोगे जाये, वे गन्ध, रम और स्पर्श द्रव्य ‘भोग' कहे जाते हैं । वे भोग पुद्गल धर्म होने से मूर्त हैं, अतएव रूपी हैं, अरूपी नहीं । किन्हीं संजी गन्धादि प्रधान जीव शरीरों की अपेक्षा भोग सचित्त भी हैं और किन्हीं असंज्ञी गन्धादि विशिष्ट जीव-शरीरों की अपेक्षा अचित्त भी हैं। जीवों के शरीर विशिष्ट गन्धादि युक्त होते हैं । इसलिये भोग, जीव भी है और अजीव द्रव्य भी विशिष्ट गन्धादि युक्त होते हैं, इसलिये भोग अजीव भी हैं। .
चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीव काम-भोगी हैं। वे सबसे थोड़े हैं, उनसे नोकामीनोभोगी अर्थात् सिद्ध जीव अनन्तगुणे हैं और भोगी अर्थात् एकेंद्रिय बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय जीव उससे अनन्त गुणे हैं, क्योंकि एक अकेली वनस्पतिकाय ही अनन्त गुण है !
छमस्थ और कवली
१८ प्रश्न छउमत्ये णं भंते ! मणूसे जे भविए अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववजित्तए, से णूणं भंते ! से खीणभोगी णो पभू उहाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कार-परकमेणं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए ? से पूर्ण भंते ! एयमटुं एवं वयह ?
१८ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समटे, पभू णं भंते ! से उट्ठा
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