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________________ भगवती मूत्र-ग. ७ उ. ७ काम-भोग ११७३ १६ उत्तर-गोयमा ! चउरिंदिया कामी वि, भोगी वि । प्रश्न-मे केणटेणं जाव भोगी वि ? उत्तर-गोयमा ! चक्खिदियं पडुच्च कामी, घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाइं पडुच्च भोगी, से तेणटेणं जाव भोगी वि अवसेसा जहा जीवा, जाव वेमाणिया। १७ प्रश्न-एएसि णं भंते ! जीवाणं कामभोगीणं, गोकामीणं गोभोगीणं, भोगीण य कयरे कयरहितो जाव विसेसाहिया वा ? ... १७ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी, णोकामी णोभोगी अणंतगुणा, भोगी अणंतगुणा। .. भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! भोग, कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ११ उत्तर-हे गौतम ! भोग तीन प्रकार के कहे गये हैं । यथा-गन्ध, रस और स्पर्श। १२ प्रश्न-हे भगवन् ! काम-भोग, कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १२ उत्तर-हे गौतम ! काम और भोग दोनों मिलाकर पांच प्रकार के कहे हैं । यथा-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श । १३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव कामी हैं या भोगी हैं ? १३ उत्तर-हे गौतम ! जीव, कामी भी हैं और भोगी भी हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं ? . उत्तर-हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय और चारिन्द्रिय की अपेक्षा जीव कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय तथा स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा जीव भोगी हैं। इस कारण हे गौतम ! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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