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भगवती मूत्र-ग. ७ उ. ७ काम-भोग
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१६ उत्तर-गोयमा ! चउरिंदिया कामी वि, भोगी वि । प्रश्न-मे केणटेणं जाव भोगी वि ?
उत्तर-गोयमा ! चक्खिदियं पडुच्च कामी, घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाइं पडुच्च भोगी, से तेणटेणं जाव भोगी वि अवसेसा जहा जीवा, जाव वेमाणिया।
१७ प्रश्न-एएसि णं भंते ! जीवाणं कामभोगीणं, गोकामीणं गोभोगीणं, भोगीण य कयरे कयरहितो जाव विसेसाहिया वा ? ... १७ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी, णोकामी णोभोगी अणंतगुणा, भोगी अणंतगुणा। .. भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! भोग, कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
११ उत्तर-हे गौतम ! भोग तीन प्रकार के कहे गये हैं । यथा-गन्ध, रस और स्पर्श।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! काम-भोग, कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! काम और भोग दोनों मिलाकर पांच प्रकार के कहे हैं । यथा-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श ।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव कामी हैं या भोगी हैं ? १३ उत्तर-हे गौतम ! जीव, कामी भी हैं और भोगी भी हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं ?
. उत्तर-हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय और चारिन्द्रिय की अपेक्षा जीव कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय तथा स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा जीव भोगी हैं। इस कारण हे गौतम ! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। .
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