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भगवती सूत्र-श. ७ उ. ६ छठे आरे के मनुप्यों का स्वरूप
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थेरगणरा; पविरलपरिसडियदंतसेढी, उम्भडघड (य) मुहा (उच्भडघाडामुहा) विसमणयणा, वंकणासा वंक (ग) वलीविगय-भेसणमुहा, कच्छू कमरा-भिभूया, खर-तिक्खणख-कंड्यविक्खयतणू, दददुः किडिभ सिंज्झ-फुडियफल्सच्छवी, चित्तलंगा, टोलागइ-विसमसंधिबंधणउक्कुडुअट्ठिगविभत्त-दुबला कुसंघयण-कुप्पमाण-कुसंटिया, कुरूवा कुट्ठाणासण-कुसेज्ज-दुभोइणो, असुइणो, अणेगवाहिपरिपीलियंगमंगा, खलंत-वेव्भलगई, निरुच्छाहा, सत्तपरिवज्जिया, विगय चेट्ट-गढतेया, अभिक्खणं सीय-उण्ह-खर-फरुसवायविज्झ:डियमलिणपंसुरयगुडियंगमंगा, बहुकोह-माण-माया, बहुलोभा, असुह-दुक्खभागी, ओसणं धम्मसण्ण-सम्मत्तपरिभट्ठा, उक्कोसेणं रयणिप्पमाणमेत्ता, सोलसवीसइवासपरमाउसो, पुत्त-णत्तुपरियालपणय (परिपालण) बहुला गंगा: सिंधूओ महाणईओ, वेयड्ढे च पव्वयं णिस्साए बावत्तारै णिओया बीयं बीयामेत्ता विलवासिणो भविस्संति । .
कठिन शब्दार्थ-मणादेज्जवयणा-जिनके वचन स्वीकार करने योग्य नहीं, जिल्लज्जानिलंज्ज, मज्जायातिक्कमप्पहाणा-मर्यादा का उल्लंघन करने में अग्रगण्य, अकज्जणिच्चज्जत्ता-अकार्य करने में सदैव तत्पर, गुरुनियोविणयरहिया-मातापितादि गुरुजन के विनय से रहित, फुट्टसिरा-खड़े केश वाले, कविलपलियकेसा-कपिल अर्थात् पीले और पलित अर्थात् सफेद केग वाले. कच्छूकसराभिभूया-खुजली को खुजलाने से दुःखी बने हुए, बकिरिसिज्म फुडिय फरसच्छवी-दाद किडिभ और कुष्ट रोग से कटी हुई चमड़ी वाले, टोलागइ-ऊँट के समान चाल, खलंत वेम्भलगई-स्खलन युक्त विव्हल गतिवाले, मोसणं-बहुलता से प्रायः करके, णिस्साए-आश्रय में ।
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