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भगवती सूत्र – श. ३ उ. २ असुरकुमारों के सौधर्मकल्प में जाने का कारण ६१३
कर) एकान्त स्थान में भाग जाते हैं ।
१३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या उन वैमानिक देवों के पास यथोचित छोटे छोटे रत्न होते हैं ?
१३ उत्तर - हाँ, गौतम ! उन वैमानिक देवों के पास यथोचित छोटे छोटे रत्न होते हैं ?
१४ प्रश्न - हे भगवन् ! जब वे असुरकुमार देव, वैमानिक देवों के छोटे छोटे रत्न चुरा कर ले जाते हैं, तो वैमानिक देव उनका क्या करते हैं ?
१४ उत्तर - हे गौतम! जब असुरकुमार देव, वैमानिक देवों के रत्न चुरा कर भाग जाते हैं, तब वे वैमानिक देव, असुरकुमारों को शारीरिक पीड़ा पहुँचाते हैं अर्थात् प्रहारों के द्वारा उनको पीटते हैं ।
विवेचन - जब वे असुरकुमार देव, वैमानिक देवों के रत्नों को चुराकर एकान्त प्रदेश में भाग जाते हैं, तब वैमानिक देव, उन रत्न चुराने वाले असुरकुमार देवों के शरीर पर प्रहार करते हैं और इस प्रकार वे उन्हें पीड़ा पहुंचाते हैं । उस मार की वेदना कम से कम अन्तर्मुहूर्त्त तक और अधिक से अधिक छह महीने तक रहती है।
१५ प्रश्न - पभू णं भंते! असुरकुमारा देवा तत्थ गया चेव समाणा ताहिं अच्छराहिं सधि दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरित्तए ।
१५ उत्तर - णो इट्टे समट्ठे, तं णं तओ पडिनियत्तंति, तओ पडिनियत्तित्ता इहमागच्छंति, आगच्छित्ता जइ णं ताओ अच्छ राओ आढायंति परियाणंति, पभू णं ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छाहिं सधि दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरित्तए, अह णं ताओ अच्छराओ णो आढायंति, णो परियाणंति, णो णं पभू
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