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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ असुरकुमारों का गमन सामर्थ्य ६०९ संगइस्स वा वेदणउवसामणयाए, एवं खलु असुरकुमारा देवा तच्च पुढविं गया य, गमिस्संति य । कठिन शब्दार्थ - अहेगइ विसए - नीचे जाने का विषय-शक्ति, केवइयं - कितनी, किपत्तियं -- किस कारण से, पुब्ववेरिस्स - पूर्व शत्रु का, पुव्वसंगइयस्स - - पूर्व संगतिक - मित्र का, वेदणउदीरणयाए – दुःख देने के लिए, वेदणउवसामणयाए – दुःख का शमन करने के लिए --सुखी करने के लिए । - भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या असुरकुमारों का सामर्थ्य अपने स्थान से नीचे जाने का है ? ४ उत्तर - हाँ, गौतम ! उनमें अपने स्थान से नीचे जाने का सामर्थ्य है । ५ प्रश्न - हे भगवन् ! वे असुरकुमार, अपने स्थान से कितने नीचे जा सकते हैं ? ५ उत्तर - हे गौतम ! असुरकुमार, सातवीं पृथ्वी तक नीचे जाने की शक्ति वाले हैं, परंतु वे वहाँ तक कभी गये नहीं, जाते नहीं और जायेंगे भी नहीं, किंतु तीसरी पृथ्वी तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे । ६ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार देव, तीसरी पृथ्वी तक गये, जाते है और जायेंगे, इसका क्या कारण है ? ६ उत्तर - हे गौतम ! असुरकुमार देव अपने पूर्व शत्रु को दुःख देने के लिए और पूर्व मित्र का दुःख दूर कर सुखी बनाने के लिए तीसरी पृथ्वी तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे । ७ प्रश्न - अस्थि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं तिरिय गइविसए पण्णत्ते ? Jain Education International ७ उत्तर - हंता, अस्थि । ८ प्रश्न - केवइयं च णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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