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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता
और 'भो' शब्द आमन्त्रणवाची है । ' इति भो ! इति भो!' यह उनके परस्पर सम्बोधित करने का तरीका है।) इस प्रकार सम्बोधित करके वे परस्पर अपना कार्य करते रहते हैं।
३१ प्रश्न--क्या देवेन्द्र देवराज शक और देवेन्द्र देवराज ईशान, इन दोनों में परस्पर विवाद भी होता है ?
३१ उत्तर-हाँ, गौतम! उन दोनों इन्द्रों के बीच में विवाद भी होता है।
३२ प्रश्न-हे भगवन् ! जब उन दोनों इन्द्रों के बीच में विवाद हो जाता है, तब वे क्या करते हैं ?
३२ उत्तर-हे गौतम ! जब शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र, इन दोनों के बीच में विवाद हो जाता है, तब वे दोनों, देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार का मन में स्मरण करते हैं । उनके स्मरण करते ही सनत्कुमारेन्द्र उनके पास आता है। वह आकर जो कहता है उसको वे दोनों इन्द्र मान्य करते हैं। वे दोनों इन्द्र उसकी आज्ञा, सेवा, आदेश और निर्देश में रहते हैं।
- सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता
३३ प्रश्न-सणंकुमारे णं भंते ! देविंदे देवराया, किं भवसिद्धिए, अभवसिद्धिए ? सम्मट्ठिी, मिच्छदिट्ठी ? परित्तसंसारए, अणंतसंसारए ? सुलभबोहिए, दुल्लभवोहिए ? आराहए, विराहए ? चरिमे, अचरिमे ?
३३ उत्तर-गोयमा ! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धिए, नो अभवसिद्धिए। एवं सम्मट्टिी, परित्तसंसारए, सुलभ
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