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________________ भगवती मुत्र-श. ३ उ. १ सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता ५९९ २८ उत्तर-हाँ गौतम ! वह आलाप-संलाप-बातचीत करने में समर्थ है। जिस तरह पास आने के सम्बन्ध में दो आलापक कहे हैं, उसी तरह आलाप संलाप के विषय में भी दो आलापक कहने चाहिए। २९ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तेसिं सक्की-साणाणं देविंदाणं, देवराईणं किच्चाई, करणिज्जाइं समुप्पजंति ? . २९ उत्तर-हंता, अस्थि । ३० प्रश्न-से कहमियाणिं पकरंति ? ३० उत्तर-गोयमा ! ताहे चेवं णं से सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिअं पाउन्भवइ, ईसाणे वा देविंदे देवराया सक्कस्स देविंदस्स, देवरण्णो अंतिअं पाउम्भवइ-इति “भो ! सक्का ! देविंदा ! देवराया ! दाहिणड्ढलोगाहिवई” ! इति “भो ! ईसाणा ! देविंदा ! देवराया ! उत्तरड्ढलोगाहिबई" ! इति भो ! इति भो !” त्ति ते अण्णमण्णस्स किच्चाई, करणिज्जाइं पञ्चणुव्भवमाणा विहरति । सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता ३१ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तेसिं सक्की-साणाणं देविंदाणं, देवराईणं विवादा समुप्पाजंति ? ३१ उत्तर-हंता, अस्थि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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