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भगवती मुत्र-श. ३ उ. १ सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता
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२८ उत्तर-हाँ गौतम ! वह आलाप-संलाप-बातचीत करने में समर्थ है। जिस तरह पास आने के सम्बन्ध में दो आलापक कहे हैं, उसी तरह आलाप संलाप के विषय में भी दो आलापक कहने चाहिए।
२९ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तेसिं सक्की-साणाणं देविंदाणं, देवराईणं किच्चाई, करणिज्जाइं समुप्पजंति ? .
२९ उत्तर-हंता, अस्थि । ३० प्रश्न-से कहमियाणिं पकरंति ?
३० उत्तर-गोयमा ! ताहे चेवं णं से सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिअं पाउन्भवइ, ईसाणे वा देविंदे देवराया सक्कस्स देविंदस्स, देवरण्णो अंतिअं पाउम्भवइ-इति “भो ! सक्का ! देविंदा ! देवराया ! दाहिणड्ढलोगाहिवई” ! इति “भो ! ईसाणा ! देविंदा ! देवराया ! उत्तरड्ढलोगाहिबई" ! इति भो ! इति भो !” त्ति ते अण्णमण्णस्स किच्चाई, करणिज्जाइं पञ्चणुव्भवमाणा विहरति ।
सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता
३१ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तेसिं सक्की-साणाणं देविंदाणं, देवराईणं विवादा समुप्पाजंति ?
३१ उत्तर-हंता, अस्थि ।
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