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________________ ५८४ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ बलिचंचा का आकर्षण और निवेदन णमंसामो, जाव-पज्जुवासामो, अम्हाणं देवाणुप्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अणिंदा, अपुरोहिया, अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया ! इंदाहीणा, इंदाहिट्ठिया, इंदाहीणकजा, तं तुम्भे णं देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणिं आढाह, परियाणह, सुमरह, अटुं बंधह, णियाणं पकरेह, ठिइपकप्पं पकरेह, तए णं तुम्भे कालमासे कालं किच्चा बलिचंचारायहाणीए उववजिस्सह, तएणं तुब्भे अम्हं इंदा भविस्सह, तएणं तुम्भे अम्हेहिं सद्धि दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरिस्सह । ____ कठिन शब्दार्थ-आढाह-आदर करें, अळं बंधह-अर्थ को बांधलो-दृढ निश्चय करलो, णियाणं पकरेह-निदान करलो, ठिइपकप्पं करेह-स्थिति का संकल्प करो। भावार्थ-वन्दना नमस्कार करके वे इस प्रकार बोले-हे देवानुप्रिय ! हम बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत से असुरमार देव और देवियां आपको वन्दना नमस्कार करते हैं, यावत् आपकी पर्युपासना करते हैं। हे देवानुप्रिय ! अभी हमारी बलिचंचा राजधानी इन्द्र और पुरोहित से रहित है । हे देवानुप्रिय ! हम सब इन्द्राधीन और इन्द्राधिष्ठित रहने वाले हैं। हमारा सारा कार्य इन्द्राधीन होता है । इसलिये हे देवानु प्रिय ! आप बलिचंचा राजधानी का आदर करो, उसका स्वामीपन स्वीकार करो, उसका मन में स्मरण करो, उसके लिये निश्चय करो, निदान (नियाणा) करो और बलिचंचा राजधानी का स्वामी बनने का संकल्प करो। हे देवानुप्रिय ! यदि आप हमारे कथनानुसार करेंगे, तो यहाँ काल के अवसर काल करके आप बलिचंचा राजधानी में उत्पन्न होंगे और वहाँ उत्पन्न होकर हमारे इन्द्र बनेंगे, तथा हमारे साथ दिव्य भोग भोगते हुए आनन्द का अनुभव करेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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