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________________ . भगवता सूत्र-श. : 3. १०८ सुख प्रदर्शन अशक्य २०६७ केइ मुहं वा, दुहं वा, जाव-कोलट्ठिगमायमवि, गिप्पावमायमवि, कल(म)मायमवि; मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिणिवतॄत्ता उवदंसित्तए-से कहमेयं भंते ! एवं ? १ उत्तर-गोयमा ! ज णं ते अण्णउत्थिया एवं आइवखंति, जाव-मिच्छं ते एवं आहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि, जाव-परूवेमि सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं णो चकिया, केइ सुहं वा, तं चेव, जाव-उवदंसित्तए । २ प्रश्न-मे केणटेणं ? २ उत्तर-गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे, जाव-विसेसाहिया परिक्खेवेणं पण्णत्ता; देवे णं महिड्ढीए, जाव-महाणुभागे एगं महं, मविलेवणं, गंधसमुग्गगं गहाय तं अवदालेइ, तं अवदालेता जावइणामेव कटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छराणिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वं आगच्छेजा, से णूणं गोयमा ! से केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे तिहिं घाणपोग्गलेहिं फुडे ? हंता, फुडे । चकिया णं गोयमा ! केइ तेसिं घाणपोग्गलाणं कोलटिगमायमवि जाव-उवदंसित्तए ? णो इणटे समढे। से तेणटेणं जाव-उवदंसित्तए । कठिन शब्दार्थ-चक्किया-सकता है. के लट्ठिगमायमवि-बेर को गुठली जितना भी, णिप्पावमायमवि-बाल जितना भी, अभिणिवठूत्ता-निकालकर, सविलेवणं-विलेपन करने का, गंधसमुग्गगं-गन्ध द्रव्य का डिब्बा, अबदालेइ-उघाड़ता है, घाणपोग्गलेहि-गंध के पुद्गलों का। भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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