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________________ १०६२ भगवती सूत्र - श. ६ उ. ९ महद्धिक देव और विकुर्वणा वाले स्वशरीर आदि की विकुर्वणा कर सकता है ? २ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वह देव, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके उपर्युक्त रूप से विकुर्वणा कर सकता ? ३ उत्तर - हाँ, गौतम ! कर सकता है । ४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वह देव, इहगत अर्थात् यहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है ? या तत्रगत अर्थात् वहाँ देवलोक में रहे हुए पुलों को ग्रहण करके विकुर्वगा करता है ? या अन्यत्रगत अर्थात् किसी दूसरे स्थान पर रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण कर के विकुर्वणा करता है ? ४ उत्तर - हे गौतम ! यहाँ रहे हुए और दूसरे स्थान पर रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा नहीं करता, किन्तु वहाँ देवलोक में रहे हुए तथा जहाँ विकुर्वणा करता है, वहाँ के पुद्गलों को ग्रहण करके बिकुर्वणा करता है । इस प्रकार इस गम (आलापक) द्वारा विकुर्वणा के चार भंग कहना चाहिये । यथा१ एक वर्णवाला एक आकार वाला, २ एक वर्णवाला अनेक आकार वाला, ३ अनेक वर्ण वाला एक आकार वाला और ४ अनेक वर्ण वाला अनेक आकार वाला । ५ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या महद्धिक यावत् महानुभाग वाला देव, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना काले पुद्गल को नील पुद्गलपने और नील पुद्गल को काले पुद्गलपने परिणमाने में समर्थ है ? ५ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । किन्तु बाहरी पुद्गलों की ग्रहण करके वैसा करने में समर्थ है । ६ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वह देव, इहगत पुद्गलों को या तत्रगत पुद् - गलों को या अन्यत्रगत पुद्गलों को ग्रहण करके वैसा करने में समर्थ है ? ६ उत्तर - हे गौतम ! वह इहगत और अन्यत्रगत पुद्गलों को ग्रहण करके वैसा नहीं कर सकता, किन्तु तत्रगत पुद्गलों को ग्रहण करके वैसा करने में समर्थ है। इसी प्रकार काले पुद्गल को लाल, पीला और शुक्ल परिणमाने में समर्थ है। इसी प्रकार नीले पुद्गल के साथ यावत् शुक्ल, लाल पुद्गल के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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