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________________ १०४६ • भगवती सूत्र - य. ६ उ. ८ पृथ्वियों के नीचे ग्रामादि नहीं हैं। इवा, सूराभा इ वा ? ८ उत्तर - गो इट्टे समट्टे, एवं दोच्चार पुढवीए भाणियव्वं, एवं तच्चाए वि भाणियव्वं, नवरं - देवो वि पकरेइ, असुरो विपकरेs, णो णागो पकरेइ । चउत्थीए वि एवं णवरं - देवो एक्को पकरेs, णो असुरो, णो णागो पकरेह, एवं हेट्टिल्लासु सव्वासु देवो एक्को पकड़ | कठिन शब्दार्थ - ईसीप भारा- ईषत्प्राग्भारा, अहे - अधः-नीचे, अस्थि-अस्तित्व । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! कितनी पृथ्वियां कही गई हैं ? १ उत्तर - हे गौतम! आठ पृथ्वियाँ कही गई हैं। यथा-१ रत्नप्रभा, २ शर्कराप्रभा, ३ बालुकाप्रभा, ४ पङ्कप्रभा, ५ धूमप्रभा, ६ तमः प्रभा ७ महातमः प्रभा और ईषत्प्राग्भारा । २ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे गृह (घर) या गृहापण ( दूकाने ) हैं ? २ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं । अर्थात् इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे गृह या गृहापण नहीं हैं । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ? ३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे ग्राम यावत् सन्निवेश नहीं है । ४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे महामेध संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूच्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ? ४ उत्तर - हाँ गौतम ! महामेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूच्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं । यह सब कार्य देव भी करते हैं, असुरकुमार भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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