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भगवती सूत्र - श. ६ उ ८ पृथ्वियों के नीचे ग्रामादि नहीं है
विवेचन-- काल का अधिकार चलता है इसलिए अब फिर काल के विषय में ही कहा जाता है - इस अवसर्पिणी काल में सुषमसुषमा नामक पहले आरे के समय इस भरतक्षेत्र के कैसे भाव थे ? इसके उत्तर में जीवाभिगम सूत्र में कही गई उत्तरकुरू की वक्तव्यता की भलामण दी गई है। उसके अनुसार यहाँ भी कथन करना चाहिए। उस समय वहाँ का भूमिभाग बड़ा समतल था। उद्दालक आदि वृक्ष थे, यावत् पद्म और कस्तूरी के समान गन्ध वाले मनुष्य थे । वे ममत्व रहित थे, बड़े तेजस्वी और रूपवान् थे । वे बड़े सहनशील
। उतावल और किसी प्रकार की उत्सुकता न होने से वे हाथी के समान धीरे-धीरे गम्भीर गति वाले थे । इत्यादि सारा वर्णन जीवाभिगम सूत्र की दूसरी प्रतिपत्ति में वर्णित उत्तरकुरू वर्णन के समान जान लेना चाहिए ।
॥ इति छठे शतक का सातवां उद्देशक समाप्त ||
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शतक उद्देशक ६
पृथ्वियों के नीचे ग्रामादि नहीं है
१ प्रश्न - क णं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ ?
१ उत्तर - गोयमा ! अट्ट पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयणप्पभा, जाव - ईसिप भारा ।
२ प्रश्न - अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे गेहा इवा, गेहावणा इ वा ?
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