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भगवती सूत्र-ग. ६ उ. ५ लोकान्तिक देव
विवेचन--- अगले प्रकरण में तमस्काय का वर्णन किया गया था। तमस्काय और कृष्णराजि का सादृश्य होने से अब कृष्णराजि का वर्णन किया जाता है । काले पुद्गलों की रेखा को 'कृष्णराजि' कहते हैं। कृष्ण राजि के आकार आदि का वर्णन ऊपर किया गया है। इसके आठ नाम कहे गये हैं, जिनका अर्थ इस प्रकार है-१ कृष्णराजि-काले वर्ण की पृथ्वी और पुद्गलों के परिणाम रूप होने से एवं काले पुद्गलों की राजि अर्थात् रेखा रूप होने मे इसका नाम 'कृष्णराजि' है, २ मेघराजि-काले मेघ की रेखा के सदृश होने से इसे 'मेघराजि' कहते हैं । ३ मघा-छठी नरक का नाम 'मघा' है. । छठी नरक के समान अन्धकार वाली होने से इसको 'मघा' कहते है । ४ माघवती-सातवीं नरक का नाम 'माघवती' है। मातवीं नरक के समान गाढ़ अन्धकार वाली होने से इसे 'माघवती' कहते हैं । ५ वातपरिघा -आँधी के समान सघन अन्धकार वाली और दुर्लघ्य होने से इसे 'वातपरिघा' कहते हैं। ६ वातपरिक्षोभा-आँधी के समान सघन अन्धकार वाली और क्षोभ का कारण होने से इसे 'वातपरिक्षोभा' कहते हैं। ७ देवपरिघा-देवों के लिए भी दुर्लंघ्य होने से यह उसके लिए 'परिघ' अर्थात् आगल (भोगल) के समान है, इसलिए इसे 'देवपरिघा' कहते हैं। ८ देवपरिक्षोभा-देवों को भी क्षोभ (भय) उत्पन्न करने वाली होने के कारण इसे 'देव परिक्षोभा' कहते हैं।
ये कृष्णराजियाँ सचित्त और अचित्त पृथ्वी का परिणाम रूप हैं और इसीलिए ये जीव और पुद्गल दोनों का परिणाम (विकार) रूप हैं।
ये कृष्णराजियाँ असंख्यात हजार योजन लम्बी और संख्यात हजार योजन चौड़ी . हैं । इनका परिक्षेप (परिधि-घेरा) असंख्यात हजार योजन है ।
लोकान्तिक देव
एएसि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु उवासंतरेसु अट्ठ लोगंतियविमाणा पण्णत्ता, तं जहा-अच्ची, अचिमाली, वइरोयणे पभंकरे, चंदाभे, सूराभे, मुक्काभे, सुपइट्टाभे, मज्झे रिट्ठाभे ।
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