________________
~श. ६. उ. ५ तमस्काय
१००७
१३ उत्तर-णो इणटे समढे-णण्णत्थ विग्गहगइसमावण्णएणं ।
१४ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तमुक्काए चंदिम-सूरिय-गहगणमक्खत्त तारारूवा ?
१४ उत्तर-णो इणटे समढे-पलियस्सओ पुण अस्थि ।
१५ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! तमुक्काए चंदामा इ वा, सूरामा इ वा ?
१५ उत्तर-णो इणटे समढे-कादूसणिया पुण सा । . १६ प्रश्न-तमुक्काए णं भंते ! केरिसए वण्णएणं पण्णत्ते ? - १६ उत्तर-गोयमा ! काले कालोभासे, गंभीर-लोमहरिसजणणे, भीमे, उत्तासणए, परमकिण्हे वण्णेणं पण्णत्ते । देवे वि णं अत्थेगइए जे णं तप्पढमयाए पासित्ता णं खुभाएजा । अहे गं अभिसमागच्छेज्जा, तओ पच्छा सीहं सीहं, तुरियं तुरियं खिप्पामेव वीईवएज्जा।
कठिन शब्दार्थ-विग्गहगइसमावण्णएणं-विग्रहगति समापन्न- मरने के बाद दूसरी गति में जाते हुए, पलियस्स-पास में-पड़ोस में, चंदाभा-चन्द्र की प्रभा, कादूसणिया. . . अपनी आत्मा को दूषित करने वाली, केरिसए-किसके समान-कैसा, लोमहरिसे-रोंगटे खड़े करने वाला-लोमहर्षक, उत्तासणए-उत्कम्प करने वाला-त्रासदायक, खुमाएज्जाक्षुभित होते हैं, अभिसमागच्छेज्जा-प्रवेश करते हैं, सोह-शीघ्रता से।
भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय है और बादर भग्निकाय है ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। किन्तु कहाँ विग्रहमति ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org