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भगवती सूत्र - ६ उ ५ नमस्काय
अत्यं तमुका णो वीईवएजा, एमहालए णं गोयमा ! तमुक्काए पण्णत्ते ।
कठिन शब्दार्थ - मल्लग मूलसंठिए-- मल्लकमल संस्थित- शराव के मूल के आकार, कुक्कुडपं जरंग संठिए कुकुंट पिञ्जरक संस्थित कूकड़े के पिञ्जरे के आकार, वित्थडेविस्तृत परिक्खेवे - परिक्षेप, विक्खंभेणं-- विस्तार, इणामेव--अभी, केवलकप्पं-सम्पूर्ण, तिहि अच्छराणिवाएहि - तीन चुटकी बजावे जितने तिसत्तक्खुत्तो-इक्कीस बार, अणुपरिट्टिता-फिर कर - परिक्रमा करके, उक्किट्ठाए- उत्कृष्ट, तुरियाए -- त्वरित, बीईवयमाणेपार करता हुआ, महालए - महान् — मोटा |
भावार्थ- -- ४ प्रश्न - हे भगवन् ! तमस्काय का आकार कैसा है ? ४ उत्तर - हे गौतम! तमस्काय, नीचे तो मल्लकमूलसंस्थित है अर्थात् शराव के मूल के आकार है । और ऊपर कुर्कुट पञ्जरक संस्थित- अर्थात् कूकडे के पिञ्जरे के आकार वाली है ।
५ प्रश्न - हे भगवन् ! तमस्काय का विष्कम्भ और परिक्षेप कितना कहा गया है ?
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५ उत्तर - हे गौतम! तमस्काय दो प्रकार की कही गई है । एक तो संख्ये विस्तृत और दूसरी असंख्येय विस्तृत । इनमें जो संख्येय विस्तृत है, उस का विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन है । जो तमस्काय असंख्येय विस्तृत है, उसका विष्कम्भ असंख्येय हजार योजन हं और परिक्षेप भी असंख्येय हजार योजन है ।
६ प्रश्न - हे भगवन् ! तमस्काय कितनी बडी है ?
६ उत्तर - हे गौतम ! सभी द्वीप और समुद्रों के सर्वाभ्यन्तर अर्थात् बीचोबीच यह जम्बूद्वीप है । यह एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । कोई महाऋद्धि याक्त् महानुभाववाला देव - 'यह चला, यह चला' - ऐसा करके तीन चुटकी बजावे उसने
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