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भगवतो सूत्र-श. ६ उ. ४ प्रत्याख्यान निबद्ध आय
१० उत्तर-गोयमा ! जीवा य, वेमाणिया य पच्चखाणणिव्वत्तियाउया तिण्णि वि; अवसेसा अपञ्चक्खाणणिव्वत्तियाउया ।
पञ्चक्खाणं जाणइ, कुम्वइ, तिण्णेव आउणिव्वत्ती। . सपएसुद्देसम्मि य एमेए दंडगा चउरो ॥
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। *
॥ छट्ठसए चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो॥ कठिन शब्दार्थ-पच्चक्खाणणिव्वत्तियाउया-प्रत्याख्यान से आयुष्य बाँधे हुए। भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन ! क्या जीव, प्रत्याख्यान से नितित आयुष्य वाले हैं ? अर्थात् क्या जीवों का आयुष्य प्रत्याख्यान से बंधता है, अप्रत्याख्यान से बंधता है और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान से बंधता है ?
१० उत्तर-हे गौतम ! जीव और वैमानिक देव, प्रत्याख्यान से निर्वतित आयुष्य वाले हैं, अप्रत्याख्यान निर्वतित आयुष्य वाले भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान से निर्वतित आयुष्य वाले भी हैं। शेष सभी जीव, अप्रत्याख्यान से निर्वतित आयुष्य वाले हैं।
संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है-प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान को जानना, तीनों के द्वारा आयुष्य की निर्वृत्ति, सप्रदेश उद्देशक में ये चार दण्डक कहे गये
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
विवेचन-प्रत्याख्यान, आयुष्य बन्ध में कारण भी होता है, इसलिये प्रत्याख्यान करण सूत्र के बाद आयुष्य बन्ध सूत्र कहा गया है । जीव पद में जीव प्रत्याख्यानादि तीनों द्वारा निबद्ध आयुष्य वाले होते हैं और वैमानिक पद में वैमानिक भी इसी प्रकार कहने चाहिये । क्योंकि प्रत्याख्यानादि तीनों काले जीवों की उत्पत्ति वैमानिकों में होती है । नैर
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