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________________ ९९६ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ४ जीव और प्रत्याख्यान वि, सेसा जहा-णेरइया । ८ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं पञ्चक्खाणं जाणंति, अपच्चरखाणं जाणंति, पच्चक्खाणापञ्चक्खाणं जाणंति ? ८ उत्तर-गोयमा ! जे पंचिंदिया ते तिण्णि वि जाणंति, अवसेसा पञ्चक्खाणं ण जाणंति ३। ९ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं पञ्चक्खाणं कुव्वंति, अपञ्चक्खाणं कुव्वंति, पन्चक्खाणापञ्चक्खाणं कुव्वंति ? ९ उत्तर-जहा-ओहिओ तहा कुव्वणा । कठिन शब्दार्थ-पच्चक्खाणी-प्रत्याख्यान-पाप का त्याग किये हुए, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं-प्रत्याख्यान और अप्रत्याख्यान, ओहिओ-औधिक-सामान्य, कुवणा- करना। भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं, या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं ? ६ उत्तर-हे गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। ७ प्रश्न-इसी तरह सभी जीवों के विषय में प्रश्न करना चाहिये ? ७. उत्तर-हे गौतम ! नेरयिक जीव, अप्रत्याख्यानी हैं, इसी प्रकार यावत चतुरिन्द्रिय जीवों तक अप्रत्याख्यानी हैं। इन जीवों के लिये शेष दो भंगों. (प्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी) का निषेध करना चाहिये । पञ्चेंद्रिय तिर्यञ्च प्रत्याख्यानी नहीं है, किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं। मनुष्यों में तीनों भंग पाये जाते हैं। शेष जीवों का कथन नैरयिक जीवों की तरह कहना चाहिये। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, प्रत्याख्यान को जानते हैं, अप्रत्याख्यान को जानते हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को जानते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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