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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
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(प्रत्येक शरीरादि जीव) आयष्य के बन्धकाल में आयुष्य बांधते हैं, किन्तु दूसरे समय में नहीं बांधते । इसलिए इस विषय में 'भजना' कही गई हैं । नोपरित्त नोअपरित्त अर्थात् सिद्ध जीव तो आयुष्य बांधते ही नहीं हैं।
१० ज्ञानद्वार-आभिनिबोधिक ज्ञानी (मतिज्ञानी) श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी, ये चारों वीतराग अवस्था में ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधते हैं और सराग अवस्था में बांधते हैं। इसलिए ज्ञानावरणीय कर्म बन्ध के विषय में इनकी भजना कहीं गई है। केवलज्ञानो, ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधते हैं । आभिनिबोधिकज्ञानी आदि चार ज्ञानी, वेदनीय कर्म को बांधते ही हैं, क्योंकि छद्मस्थ वीतराग भी वेदनीय के बन्धक होते हैं। केवलज्ञानी, वेदनीय कर्म को भजना से बांधते है, क्योंकि सयोगी-केवली वेदनीय के बन्धक होते हैं और अयोगी-केवली तथा सिद्ध, वेदनीय के अबन्धक होते है । इसालए वेदनीय के बन्ध के विषय में, केवलज्ञानी के लिए 'भजना' कही गई है।
२८ प्रश्न-णाणावरणिजं किं मणजोगी बंधड़; वयजोगी बंधइ, कायजोगी बंधइ, अजोगी बंधइ ? .. २८ उत्तर-गोयमा ! हेट्ठिल्ला तिण्णि भयणाए, अजोगी ण बंधइ, एवं वेयणिजवजाओ, वेयणिजं हेट्ठिल्ला बंधंति, अजोगी ण
बंधइ।
२९ प्रश्न-णाणावरणिकं किं सागारोवउत्ते बंधइ, अणागारोवउत्ते बंधइ ?
२९ उत्तर-गोयमा ! अट्ठसु वि भयणाए ।
३० प्रश्न-णाणावरणिजं किं आहारए बंधह, अणाहारए बंधइ ? - ३० उत्तर-गोयमा ! दो .वि भयणाए, एवं वेयणिज्जाउय
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