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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
बंधइ, एवं वेयणिजवजाओ सत्त वि, वेयणिजं हेछिल्ला तिण्णि बंधति, केवलदंसणी भयणाए।
कठिन शब्दार्थ-सण्णी-मनवाले जीव, असण्णी-जिनके मन नहीं, गोसण्णीणोअसण्णा-केवलज्ञानी और सिद्ध भगवान्, अचक्खुवंसणी-जो आँखों के सिवाय-कान, नाक, मुंह, शरीर और मन से देखते हैं।
भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या सम्यगदृष्टि बांधता है, मिथ्यादृष्टि बांधता है, या सम्यग्मिथ्यादृष्टि बांधता है ? ।
१९ उत्तर-हे गौतम ! सम्यग्दृष्टि कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता, मिथ्यादृष्टि तो बांधता है और सम्यगमिथ्यादृष्टि मी बांधता है। इस प्रकार आयुष्य कर्म के सिवाय शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में समझना चाहिये । आयुष्य कर्म को सम्यग्दष्टि और मिथ्यादृष्टि कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवस्था में) नहीं बांधते हैं।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या संज्ञो जीव बांधता है, असंज्ञी जीव बांधता है, या नोसंज्ञीनोअसंज्ञी जीव बांधता है ?
२० उत्तर-हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को संज्ञो जीव, कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है। असंज्ञी जीय बांधता है । नोसंज्ञी नो असंज्ञी जीव नहीं बांधता है। इस प्रकार वेदनीय और आयुष्य को छोड़कर शेष छह कर्म प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिये । वेदनीय कर्म को संजो भी बांधता है और असंज्ञी भी बांधता है, किंतु नोसंज्ञीनोअसंज्ञी कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है। आयुष्य कर्म को संज्ञी जीव और असंझो जीव भजना से बांधते है, अर्थात् कदाचित् बांधते है और कदाचित् नहीं बांधते हैं। नोसंजीनोअसंज्ञी जीव, आयुष्य कर्म को नहीं बांधते हैं।
२१ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या भवसिद्धिक बांधता है, अभवसिद्धिक बांधता है, या नोभवसिद्धिकनोअभवसिखिक बांधता है ?
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