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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
कठिन शब्दार्थ-आउयवज्जाओ--आयु छोड़ कर, हेडिल्ला-नीचे की, उवरिल्ला -ऊपर के, भयणाए-भजना मे अर्थात् विकल्प से।
भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती हैं, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है, या नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक बांधता है ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधना है और नपुंसक भी बांधता है, परन्तु जो नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक होता है, वह कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है। इस प्रकार आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सातों कर्म प्रकृतियों के विषय में समझना चाहिये।
१७ प्रश्न-हे भगवन् ! आयुष्य कर्म को क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, नपुंसक बांधता है, या नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक बांधता है ?.
१७ उत्तर-हे गौतम ! आयुष्य कर्म को स्त्री कदाचित् बांधती है और कदाचित् नहीं बांधती हैं, इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक के विषय में भी कहना चाहिये। नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक आयुष्य कर्म को नहीं बांधता।
१८ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को संयत बांधता है, असंयत . बांधता है, संयतासंयत बांधता है, या नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत बांधता
१८ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को संयत कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है, किंतु असंयत बांधता है और संयतासंयत भी बांधता है, परन्तु जो नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत होता है, वह नहीं बांधता हैं। इस प्रकार आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिये । आयुष्य कर्म के सम्बन्ध में संयत, असंयत और संयतासंयत के लिये भजना समझनी चाहिये । अर्थात् कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं वांधते है । नोसंयत-नोमसंपत-नोसंयतासंयत आयुष्य कर्म को नहीं बांधते ।
विवेचन-यहां प्रत्येक विषय में भिन्न भिन्न द्वार कहे जाते हैं ।
१ स्त्रीद्वार-स्त्री, पुरुष और नपुंसक, ये तीनों ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते हैं । जिस जीव के स्त्रीत्व, पुरुषत्व और नपुंसकत्व से सम्बन्धित वेद (विकार) का उदय नहीं
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