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________________ भगवती सूत्र - श. ६ उ १ वेदना और निर्जरा में वस्त्र का दृष्टांत ९३५ " चैव एवामेव गोयमा ! समणाणं णिग्गंथाणं अहाबायराई कम्माई सिढिली कयाई, णिट्टियाई कडाई, विष्परिणामियाई खिप्पामेव विद्वत्थाइं भवति । जावइयं तावइयं पि णं ते वेयणं वेएमाणा महाणिजरा, महापज्जवसाणा भवंति से जहा णामए केह पुरिसे सुक्कं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेज्जा, से णूणं गोयमा ! से सुक्के तणहत्थर जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविज्जइ ? हंता, मसमसाविज्जइ । एवामेव गोयमा ! समणाणं णिग्गंथाणं अहाबायराई कम्माई, जाव - महापज्जवसाणा भवंति । से जहा णामए केइ पुरिसे तत्तंसि अयकवल्लंसि उदगबिंदु, जाव- हंता, विदुर्धसं आगच्छइ, एवामेव गोयमा ! समणाणं णिग्गंथाणं, जाव महापजवसाणा भवंति से तेणट्टेणं जे महावेयणे से महाणिज्जरे, जावणिज्जराए । कठिन शब्दार्थ - आउडेमाणे- कूटता हुआ, अहिगराण आउंडेमाणे -- एरण पर चोट करता हुआ, परिसाडितए - नष्ट करने में, निट्ठियाई - निःसत्व-सत्ता रहित, विद्धत्थाइं - विध्वंश करते हैं, तणहत्थयं - घास का पुला, जायतेयंसि अग्नि में मसमसाविज्जइ-जल जाता है, अयक वल्लं सि-लोहे के तवे पर । भावार्थ - जैसे कोई पुरुष, जोरदार शब्दों के साथ महाघोष के साथ निरन्तर चोट मारता हुआ, एरण को कूटता हुआ भी उस एरण के स्थूल पुद्गलों को परिशटित ( नष्ट करने में समर्थ नहीं होता है, हे गौतम! इसी प्रकार नैरयिक जीवों के पाप कर्म गाढ़ किये हुए हैं, यावत् इसलिए वे महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले नहीं हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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