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________________ भगवती सूत्र-ग. ६ उ. १ वेदना और निर्जरा में वस्त्र का दृष्टांत ९३३ भगवं ! तत्थ णं जे से वत्थे कामरागरत्ते, से णं वत्थे दुद्धोयतराए चेव, दुवामतराए चेव, दुप्परिकम्मतराए चेव । एवामेव गोयमा ! णेरइयाणं पावाइं कम्माइं गाढीकयाई, चिकणीकयाई, सिलिट्ठीकयाई, खिलीभूयाइं भवंति। संपगाढं पि य णं ते वेयणं वेएमाणा णो महाणिजरा, णो महापजवसाणा भवंति । कठिन शब्दार्थ-पसत्थणिज्जराए–प्रशस्त निर्जरा, दुवे-दो, कद्दमरागरत्तेकर्दम-रागरक्त-कीचड़ के रंग से रंगा हुआ, खंजणरागरत्ते-खंजन-राग-रक्त-गाड़ी के पहिये की काजली के रंग से रंगा, दुद्धोयतराए-कठिनता से धोया जाने योग्य, दुवामतराए-जिसके धब्बे मुश्किल से छुड़ाये जायँ, दुप्परिकम्मतराए-जिसकी साज सजावट एवं चित्रादि मुश्किल से बनाये जायँ, गाढीकयाई–दृढ़ किये हुए. सिलिट्ठीकयाई - श्लिष्ट किये हुए, खिलीभूयाई-दृढ़तम-निकाचित किये हुए। भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है ? और जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है ? तथा महा. वेदना वाला और अल्प वेदनवाला इन दोनों में वह जीव उत्तम है, जो कि प्रशस्त निर्जरा वाला है ? . . . १ उत्तर-हाँ, गौतम ! जैसा ऊपर कहा है वैसा ही है। २ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या छठी और सातवीं पृथ्वी के नैरयिक महावेदना वाले हैं ? २ उत्तर-हाँ, गौतम, वे महावेदना वाले हैं। - ३ प्रश्न--हे भगवन् ! वे छठी और सातवीं पृथ्वी में रहने वाले नैरयिक क्या श्रमण निर्ग्रन्थों की अपेक्षा महानिर्जरा वाले हैं ? ३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् छठी और सातवीं नरक में रहने वाले नैरयिक, श्रमण निर्ग्रन्थों की अपेक्षा महानिर्जरा वाले नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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