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________________ भगवती सूत्र - श. ५ उ ८ निर्ग्रथीपुत्र अनगार के प्रश्न निर्ग्रथीपुत्र अनगार ने अपने कथन में सप्रदेश और अप्रदेश का निरुपण किया है । तो सप्रदेश में सार्द्ध और समध्य का ग्रहण करना चाहिये और अप्रदेश में अनर्द्ध और अमध्य का ग्रहण करना चाहिये । सप्रदेश और अप्रदेश पुद्गल अनन्त हैं । अब द्रव्यादि की अपेक्षा पुद्गलों की अप्रदेशता और सप्रदेशता बतलाई जाती है। जो पुद्गल द्रव्य से अप्रदेश ( परमाणु रूप ) है, वह क्षेत्र से नियमा अप्रदेश होता है । क्योंकि वह पुद्गल क्षेत्र के एक प्रदेश में ही रहता है, दों प्रदेश आदि में नहीं । काल से वह पुद्गल यदि एक समय की स्थिति वाला है, तो अप्रदेश है और अनेक समय की स्थिति वाला है, तो प्रदेश है । इसी तरह भाव से जो एक गुण काला आदि है, तो अप्रदेश है, और अनेक गुणकाला आदि हैं, तो सप्रदेश है। यह द्रव्य की अपेक्षा से अप्रदेश पुद्गल का कथन किया गया है । ९०० अब क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेश पुद्गल का कथन किया जाता है । जो पुद्गल क्षेत्र से अप्रदेश होता है, वह द्रव्य से कदाचित् सप्रदेश और कदाचित् अप्रदेश होता है । क्योंकि क्षेत्र के एक प्रदेश में रहने वाले द्वयणुकादि सप्रदेश हैं, किन्तु क्षेत्र से अप्रदेश हैं । तथा परमा एक प्रदेश में रहने वाला होने के कारण जैसे द्रव्य से अप्रदेश है, वैसे ही क्षेत्र से भी अप्रदेश है । जो पुद्गल क्षेत्र से अप्रदेश है, वह काल से कदाचित् सप्रदेश और कदाचित् अप्रदेश होता है । जैसे कि कोई पुद्गल एक प्रदेश में रहने वाला है और एक समय की स्थिति वाला है, तो काल की अपेक्षा भी अप्रदेश है । इसी तरह कोई पुद्गल जो एक प्रदेश में रहने वाला है किन्तु अनेक समय की स्थिति वाला है, तो काल की अपेक्षा सप्रदेश है । जो पुद्गल क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेश है, यदि वह एक गुण काला आदि है, तो भाव की अपेक्षा भी प्रदेश है और यदि अनेक गुण काला आदि है, तो क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेश होते हुए भी भाव की अपेक्षा सप्रदेश है । अब काल की अपेक्षा और भाव की अपेक्षा अप्रदेश पुद्गल का कथन किया जाता है । जिस प्रकार क्षेत्र से अप्रदेश पुद्गल का कथन किया गया है, उसी प्रकार काल से और भाव से भी कहना चाहिये । यथा - जो पुद्गल काल से अप्रदेश होता है, वह द्रव्य से, क्षेत्र से और भाव से कदाचित् सप्रदेश होता है और कदाचित् अप्रदेश होता है जो पुद्गल भाव से अप्रदेश होता है, वह द्रव्य से, क्षेत्र से और काल से कदाचित् सप्रदेश होता है और कदाचित् अप्रदेश होता है । अब प्रदेश पुद्गल के विषय में कथन किया जाता है । जो पुद्गल द्वयणुकादि रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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