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________________ ८८८. भगवती सूत्र -- श. ५ उ. ७ बेइंद्रिय आदि का परिग्रह महापहा परिग्गहिया भवंति, सगडरह जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लिसीय-संदमाणियाओ परिग्गहियाओ भवंति, लोही-लोहकडाह-कडुच्छया परिग्गहिया भवंति,भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा, देवीओ मणुस्सा, मणुस्सीओ, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ; आसण-सयण-खंभ-भंड-सचित्ताऽचित्त-मीसियाई दव्वाइं परिग्गहिया भवंति-से तेणठेणं । .. -जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा वि भाणियब्वा, वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा भवणवासी तहा णेयव्वा । भावार्थ-३२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या बेइन्द्रिय जीव, आरंभ और परिग्रह सहित है, अथवा अनारंभी और अपरिग्रही हैं ? ३२ उत्तर-हे गौतम ! बेइन्द्रिय जीव, आरंभ और परिग्रह सहित हैं, किन्तु अनारंभी और अपरिग्रही नहीं हैं। क्योंकि उन्होंने यावत् शरीर परिगृहीत किये हैं, और बाह्य भाण्ड (बर्तन) मात्रक, उपकरण, परिगृहीत किये हैं । इसी तरह चौइन्द्रिय तक कहना चाहिये । . ३३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीव, आरंभ और परिग्रह सहित हैं, अथवा अनारम्भी और अपरिग्रही हैं ? । ____३३ उत्तर-हे गौतम ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीव, आरम्भ और परिग्रह सहित है, किंतु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने शरीर यावत् कर्म परिगृहीत किये हैं। उन्होंने टंक (पर्वत का छेदा हुआ टुकड़ा) कूट (शिखर अथवा हाथी बांधने का स्थान) शैल (मुण्ड पर्वत) शिखरी (शिखर वाले पर्वत) प्रागभार (थोडे झुके हुए पर्वत के हिस्से) परिगृहीत किये हैं। उन्होंने जल, स्थल, बिल, गुफा, लयन (पहाड़ में खोदकर बनाये हुए घर) परिगृहीत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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