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________________ ८७६ भगवती सूत्र-श. ५ उ.७ परमाणु पुदैगलादि की स्पर्शना हुए हैं, वे दोनों, भिन्न आकाश प्रदेश पर रहे हुए उस त्रिप्रदेशी स्कन्ध के दो अंश हैं और एक परमाणु पुद्गल उन दो अंशों को स्पर्श करता है । इसलिये 'सर्व से दो देशों को स्पर्श करता है' इस प्रकार का व्यपदेश करना संगत है। जब त्रिप्रदेशी स्कन्ध परिणाम की सूक्ष्मता के कारण एक आकाश प्रदेश पर स्थित होता है, तब ‘सर्व से सर्व को स्पर्श करता है'—यह नववां विकल्प घटित होता है। परमाणु द्वारा चतुःप्रदेशी, पंचप्रदेशी आदि स्कन्धों को स्पर्शना भी इसी प्रकार कहनी चाहिए। जब द्विप्रदेशी स्कन्ध, एक परमाणु पुद्गल को स्पर्श करता है, तब तीसरा और नववां ये दो विकल्प घटित होते हैं । अर्थात् जब द्विप्रदेशी स्कन्ध, आकाश के दो प्रदेशों पर स्थित होता है, तब वह अपने एक देश द्वारा समस्त परमाणुओं को स्पर्श करता है और तब 'एक भाग से सर्व भाग को स्पर्श करता है।' यह तीसरा विकल्प घटित होता है। जब द्विप्रदेशी स्कन्ध, आकाश के एक प्रदेश पर स्थित होता है, तब वह सर्वात्म द्वारा सर्व परमाणु को स्पर्श करता है। इसलिये वहां 'सर्व से सर्व को स्पर्श करता है। यह नववां विकल्प घटित होता है । जब द्विप्रदेशी स्कन्ध, द्विप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता है, तब पहला, तीसरा. सातवां और नववां-ये चार विकल्प घटित होते हैं । जब दोनों द्विप्रदेशी स्कन्ध, प्रत्येक प्रत्येक दो दो आकाश प्रदेशों पर स्थित होते है, तब वे परस्पर एक देश से एक देश को स्पर्श करते हैं । तब प्रथम विकल्प घटित होता है । जब एक द्विप्रदेशी स्कन्ध, एक आकाश प्रदेश पर स्थित होता है और दूसरा द्विप्रदेशी स्कन्ध, दो आकाश प्रदेशों पर स्थित होता है, तब 'एक देश से सर्व को स्पर्श करता है'-यह तीसरा विकल्प घटित होता है । क्योंकि दो आकाश प्रदेशों पर स्थित द्विप्रदेशी स्कन्ध, अपने एक देश द्वारा एक आकाश प्रदेश पर स्थित द्विप्रदेशी स्कन्ध के सर्व देशों को स्पर्श करता हैं । 'सर्व से देश को स्पर्श करता है-यह सातवां विकल्प है। क्योंकि एक आकाश प्रदेश पर स्थित द्विप्रदेशी स्कन्ध, सर्वात्म द्वारा दो आकाश प्रदेशों पर स्थित द्विप्रदेशी स्कन्ध के एक देश को स्पर्श करता है । जब दोनों द्विप्रदेशी स्कन्ध, प्रत्येक प्रत्येक एक एक आकाश प्रदेश पर स्थित होते हैं, तब 'सर्व से सर्व को स्पर्श करता हैं'• यह नववां विकल्प घटित होता है। इसी प्रकार उपर्युक्त रीति से आगे के यथा संभव सब विकल्प घटा लेने चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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