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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ परमाणु पुद्गलादि अछेद्य
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विवेचन - छठे उद्देशक के अन्त में कर्म पुद्गलों की निर्जरा का कथन किया गया है । निर्जरा चलन रूप है । इसलिये सातवें उद्देशक में पुद्गलों की चलन क्रिया का कथन किया जाता है।
पुदगलों में कम्पन आदि धर्म कादाचित्क है, इसलिये पुद्गल कदाचित् कम्पता है और कदाचित् नहीं कम्पता है । परमाणु पुद्गल में कम्पन विषयक दो भंग होते हैं । द्विप्रदेशी स्कन्ध में तीन भंग, त्रिप्रदेशी स्कन्ध में पांच भंग और चतुष्प्रदेशी स्कन्ध में छह भंग होते हैं, जो ऊपर भावार्थ में बतला दिये गये हैं। चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान पंच प्रदेशी स्कन्ध से लेकर यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक प्रत्येक स्कन्ध के विषय में कहना चाहिये।
परमाणु पुद्गलादि अछेद्य
५ प्रश्न-परमाणुपोग्गले णं भंते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ?
५ उत्तर-हंता, ओगाहेजा। ६ प्रश्न-से णं भंते ! तत्थ छिज्जेज वा भिजेज वा ? .
६ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समो, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ, एवं जाव-असंखेजपएसिओ ?
७ प्रश्न-अणंतपएसिए णं भंते ! खंधे असिधारं वा खुरधार वा वा ओगाहेजा ?
७ उत्तर-हंता, ओगाहेजा। ८ प्रश्न-से णं तत्थ छिजेज वा भिजेज वा ? ८ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइए छिजेज वा भिज्जेज वा अत्थे
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