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________________ भगवती सूत्र - श. ५ उ. ५ कुलकर आदि सर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? ६ उत्तर - हे गौतम ! सात कुलकर हुए । इसी तरह तीर्थङ्करों की माता, पिता, पहली शिष्याएं, चक्रवर्ती की माताएं, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के माता पिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार समवायांग सूत्र में किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए । ८३७ 1 विवेचन - अपने अपने समय के मनुष्यों के लिये जो व्यक्ति मर्यादा बांधते हैं, उन्हें 'कुलकर' कहते हैं । ये हीं सात कुलकर ' सात मनु' भी कहलाते है । वर्तमान अवस पिणी के तीसरे आरे के अन्त में सात कुलकर हुए हैं। कहा जाता है कि उस समय दस प्रकार के कल्पवृक्ष काल-दोष के कारण कम गये। यह देखकर युगलिये अपने अपने वृक्षों पर ममत्व करने लगे । यदि कोई युगलिया दूसरे के कल्पवृक्ष से फल ले लेता, तो झगड़ा खड़ा हो जाता । इस तरह कई जगह झगड़े खड़े होने पर युगलियों ने सोचा कि कोई पुरुष ऐसा होना चाहिये जो सब के कल्पवृक्षों की मर्यादा बाँध दे। वे किसी ऐसे व्यक्ति की खोज कर ही रहे थे कि उनमें एक युगल स्त्री पुरुष को वन के एक सफेद हाथी ने अपने आप सूंड से उठाकर अपने ऊपर बैठा लिया। दूसरे युगलियों ने समझा कि यही व्यक्ति हम लोगों में श्रेष्ठ है और न्याय करने योग्य है । अतः सभी ने उसको अपना राजा माना, तथा उसके द्वारा बांधी हुई मर्यादा का पालन करने लगे। ऐसी कथा प्रचलित है । पहले कुलकर का नाम विमलवाहन है। बाकी छह कुलकर इसी के वंश में क्रमशः हुए है। उनके नाम इस प्रकार हैं- पहला विमलवाहन, दूसरा चक्षुष्मान, तीसरा यशस्वान, चौथा अभिचन्द्र, पांचवां प्रसेनजित्, छठा मरुदेव और सातवाँ नाभि । इनकी भार्याओं के नाम इस प्रकार है- १ चन्द्रयशा २ चन्द्रकान्ता ३ सुरूपा ४ प्रतिरूपा ५ चक्षुष्कान्ता ६ श्रीकान्ता और ७ मरुदेवी । Jain Education International 7 इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में चौवीस तीर्थंकर हुए हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं- १ श्री ऋषभदेव स्वामी (आदिनाथ स्वामी) २ श्री अजितनाथ स्वामी ३ श्री संभव स्वामी ४ श्री अभिनन्दन स्वामी ५ श्री सुमतिनाथ स्वामी ६ श्रीपद्मप्रभ स्वामी ७ श्री सुपार्श्वनाथ स्वामी ८ श्री चन्द्रप्रभ स्वामी ९ श्री सुविधिनाथ स्वामी ( श्रीपुष्पदन्त स्वामी) १० श्री शीतलनाथ स्वामी ११ श्री श्रेयांसनाथ स्वामी १२ श्री वासुपूज्य स्वामी १३ श्री विमलनाथ स्वामी १४ श्री अनन्तनाथ स्वामी १५ श्री धर्मनाथ स्वामी १६ श्री शान्तिनाथ स्वामी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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