________________
भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ केवली का असीम ज्ञान
व्याकरण का उत्तर देते हैं, क्या उस उत्तर को वहां रहे हुए अनुत्तरौपपातिक देव जानते और देखते हैं ?
३१ उत्तर-हाँ, गौतम ! वे जानते और देखते हैं ? ३२ प्रश्न--हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
३२ उत्तर--हे गौतम ! उन देवों को अनन्त मनोद्रव्य-वर्गणा लब्ध (मिली) है, प्राप्त है, अभिसमन्वागत है अर्थात् सम्मुख प्राप्त हुई है । इस कारण से यहाँ रहे हुए केवली महाराज द्वारा कथित अर्थ आदि को. वे वहाँ रहे हुए ही जानते और देखते हैं ?
३३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव, उदीर्ण मोहवाले हैं, उपशान्त मोह वाले हैं, या क्षीण मोह वाले हैं ?
३३ उत्तर-हे गौतम ! वे उदीर्ण मोहवाले नहीं हैं और क्षीण मोहवाले भी नहीं है, परन्तु उपशान्त मोहवाले हैं। अर्थात् उनके वेद-मोह का उत्कट उदय नहीं है।
केवली का असीम ज्ञान
३४ प्रश्न केवली णं भंते ! आयाणेहिं जाणइ पासइ ? ३४ उत्तर-गोयमा ! णो इणढे समढे ।
३५ प्रश्न-से केणटेणं जाव-केवली णं आयाणेहिं ण जाणइ, ण पासइ ?
३५ उत्तर-गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ, जाव णिव्वुडे दंसणे केवलिस्स से तेणटेणं ।
कठिन शब्दार्थ-आयाहि-आदान- इन्द्रियों द्वारा, णिव्वुडे-निवृत्त-निरावरण ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org