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भगवती सूत्र - श ५ उ ४ दो देवों का भ. महावीर से मौन प्रश्न ८१३
कपाओ, महासग्गाओ विमाणाओ दो देवा महिड्ढिया, जावपाउन्भूया तरणं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो, वंदित्ता णमंसित्ता, मणसा चैव इमाई एयारूवाई वागरणाई पुच्छामो - कह णं भंते! देवाणुप्पियाणं अंतेवासीसयाई मिज्झिहिंति, जाव - अंतं करिहिंति ? तरणं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुढे, अम्हे मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ - एवं खलु देवाशुपिया ! मम सत्त अंतेवासीसयाई, जाव- अंतं करेहिंति, तणं अम्हे समणं भगवया महावीरेणं मणसा चेव पुट्टेणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो वंदित्ता णमंसित्ता, जाव-पज्जुवासामो त्ति कट्टु भगवं गोयमं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउचभूया तामेव दिसिं पडिगया ।
कठिन शब्दार्थ - अब्भणुष्णाए - आज्ञा होने पर, पहारेत्थ गमणाए मार्ग पर आते हुए, एज्जमानं पासंति - आते हुए देखे, खिप्पामेव - शीघ्र ही, अब्भुट्ठेतिखड़े हुए, पच्चुवागच्छंति - सामने आये, अम्हे - हम |
उठ
भावार्थ - इसके पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा इस प्रकार - की आज्ञा मिलने पर गौतम स्वामी ने भगवान् को वन्दना नमस्कार किया । फिर वे उन देवों की तरफ जाने लगे । गौतम स्वामी को अपनी ओर आते हुए देखकर वे देव हर्षित यावत् प्रसन्न हृदयवाले हुए और शीघ्र ही खडे होकर उनके सामने गये और जहाँ गौतम स्वामी थे, वहां पहुंचे। फिर उन्हें वन्दना नमस्कार करके देवों ने इस प्रकार कहा - 'हे भगवन् ! हम महाशुक्र नामक
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